मैं दिवाली देखना चाहता हूं





बेताब है रोशनी,
दरार से झांकने को,
सही सलामत हूं मैं,
अकेला भी,
साथ नहीं कोई यहां,
सोच कहती है,
जलते दीये देखूं,
मोम का पिघलना देखूं।

कदमों को धीरे बढ़ा,
चलना चाहता हूं,
अंधेरे में रहा जीवन,
उजाला देखना चाहता हूं,
बीत गयी होली कब की,
रंगों में नहीं नहाया,
इस बार,
सिर्फ एक बार,
रोशनी में भीगना चाहता हूं,
लड़खड़ाते कदमों से ही सही,
सच कहूं,
मैं दिवाली देखना चाहता हूं।

-harminder singh