खोई यादों को वापिस लाने की चाह




लाठी जर्जरता को ओढ़े है मेरी तरह। न वह थकी है, न मैं। हमारा साथ समय के साथ पुराना होता जा रहा है। वह भी चुप है, मैं भी।

हमारी किस्मत शायद एक-जैसी लगती है। मैं नहीं जानता कि कितना वक्त बचा है। हां, इतना मालूम है कि वक्त कम है।

खोई यादों को वापिस लाने की चाह है मेरी। उन्हें सीने से लगाने की ख्वाहिश है क्योंकि एक बार ही सही, मैं उन पलों को जीना चाहता हूं। मैं उन शब्दों की रो में बहना चाहता हूं जो नाजुक थे, प्रभावपूर्ण थे, चंचल थे, हृदय पर छपते थे।

नहीं चाहता कड़वी यादों को दोहराना। कड़वापन मीठा नहीं हो सकता। मिठास की वास्तविक परिभाषा मैं नहीं जानता। अंधकार में लौटने की ख्वाहिश किसी की नहीं होती। उजाला सबको अच्छा लगता है।

-harminder singh