क्षोभ

विषाद गहरा होता जा रहा,
शुष्क गीत गा रहा,
आलस्य से नहा रहा,
नीरसता जगा रहा,
हाय! यह वियोग है।

तम सा गहरा,
सलिल सा ठहरा,
पर नीर है बहता,
पाषाण है कहता,
तन से सहता,
हाय! यह क्षोभ है।

-HARMINDER SINGH