बेहाल बागवां

पाला नाज से जिन्हें,
आज आंख दिखाते हैं,
सुनते नहीं, उलटे
जुबान लड़ाते हैं,

यह सिला मिला एक बागवां को,
बगीचा पाल कर,
उन्हें परवाह नहीं, खुश हैं ‘वे’,
बागवां को बेहाल कर,

दर्द को किस से कहे ’बेचारा’,
किस्मत को कोस रहा,
पड़ा एक कोने में,
मन मसोस रहा,

कुछ नहीं बचा अब,
सब छिना जा रहा,
कैसा खेल है ऊपरवाले,
‘वह’ पराया गिना जा रहा।

-harminder singh