![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgX_PXBTQEHTL4L0RXVtSDvd8ygi9h-jhZ-opY2udDM6C-OJSK4BpauKDHNQrt5PahGuzv74i7WIwJhGZmE-lglNJW0bXaVYziNGtX-c7Bj2M540kQm6hem7sZAT5vv9CzTDoAAyfonzy03/s400/bodhi+kaki+vradhgram.png)
‘पल कितने अनमोल थे जब हम आसमान से बातें करते थे। आसमान तब भी हमारे सिर पर था, आज भी है। फर्क इतना हो गया कि तब बातें होती थीं, अब लीना होना है। भूल से जो हुआ उसके लिए माफी मांगती हूं। आगे ऐसा न हो, यह मेरी कामना है। तुमने खुद इतना माना कि तुम भूत को भूल नहीं सकते, भविष्य में झांक नहीं सकते। वर्तमान में जीते हो, जी रहे हो। इंसान पुरानी बातों को स्मरण कर प्राय: सोच में पड़ जाते हैं। उन्हें लगता है कि वे बातें उनके जीवन को जकड़े हुए हैं। जबकि वे इससे अंजान हैं कि वे यादों को पकड़े हैं, उन्हें भूल नहीं पा रहे। खराब यादों को याद करने से कोई फायदा नहीं, उल्टे इससे नुक्सान की गुंजाइश अधिक रहती है। कोई व्यक्ति अपनी क्षति चाहता नहीं।’
काकी खुद यादों में खोयी रहती है। उसने मुझे अपना जीवन-अनुभव बताया है और बता रही है। सोचता हूं कि हमारे बुजुर्ग किस तरह हर चीज को सहेज कर रखते हैं, ताकि हमें उनसे रुबरु करा सकें। ‘बुढ़ापे का सहारा यादों में कटता है’-ऐसा बूढ़ी काकी ने बताया है। वह बहुत कुछ बताना चाहती है। उसकी बातें सच्चाई की तह-दर-तह प्रस्तुति हैं।
काकी कहती है,‘यादों को समेटने का वक्त आ गया है। बुढ़ापा चाहता है कि जिंदगी थमने से पहले यादों को फिर जीवित कर लो। शायद कुछ पल का सुकून मिल जाए। शायद कुछ पल पुराना जीवन जीकर थोड़ा हैरान खुद को किया जाए। कितना अच्छा हो, कितना मजेदार हो, कितना शानदार हो वह वक्त। मैं यादों की पोटली समय-समय पर खोलती रहती हूं ताकि उन्हें बिखेर कर फिर से समेट सकूं। यह वाकई जीवन को नये रंग से भर देता है।’
-harminder singh