कतरनों में लिपटी जिंदगी

सूख चुका है कुछ,
फिर भी नमी बाकी है।

यह खुद की खुद से लड़ाई है,
मैं समझ रहा कि
जद्दोजहद कितनी है,
जान चुका,
जिंदगी कतरनों में
लिपट रो रही है।

एक उधड़ी परत को
सीने की कोशिश कर रहा हूं,
पता नहीं किस तरह मैं जी रहा हूं।

करवट लेता हूं तो दुखती है काया,
आजकल हडिड्यां चर्र-चर्र जो करती हैं।

-harminder singh