जाले बुन रहा यादों के,
किसी सन्नाटे से कम नहीं,
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डूबते भंवर का वासी हूं,
सफल में चला अकेला,
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शांत नहीं अशांत भरा,
कोलाहल की पुरवाई नहीं,
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हताश, निराश, जर्जर तन,
मिट गयी जो आस थी,
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साथ नहीं किसी का अब,
क्योंकि अकेला हूं मैं।
-harminder singh