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इतना कहकर काकी रुक गई। आगे बोली,‘वह स्पर्श कर अहसास करते हैं। वास्तव में स्पर्श एक अहसास ही है, अनुभव है। आंखों वाले भी स्पर्श का मतलब जानते हैं। प्रकृति सुन्दर है, लोग भी और भगवान की बनाई प्रत्येक वस्तु की छटा अपनी है। नये और पुराने का संगम है प्रकृति। इस ओर कुछ छिपा है तो उस पार का नजारा भी कम विस्मयकारी नहीं। यही प्रकृति का अद्भुत खेल है। युगों से यही होता आया है। हर बार लोगों ने संसार को अपने चश्मे से देखा है तो सुन्दरता का कोई रुप किसे भाया तो कोई रुप किसे। अपनी-अपनी समझ ने जिसे जैसा दिखाया वैसा ही उसे लगा।’
‘बुढ़ापा सुन्दर भी होता है। ऐसा मेरी नजर कहती है। मुझे मालूम है कि सबकी सोच एक-सी नहीं होती। इन जर्जर हाथों में कोमलता अब कहां? फिर भी सुन्दर हैं यह हाथ। चेहरे पर रौनक की बात छोड़ो, झुर्रियां चहलकदमी क्या, स्थायी तौर पर निवास करने लगी हैं। इतना सब बदल गया है, फिर भी खुद को किसी परी से कम नहीं समझती।’
इतना कहकर काकी का चेहरा मुस्कराहट से भर जाता है। वह अपने बिना दांतों वाले मुंह के दर्शन करा देती है। काकी को हंसता हुआ देखकर मुझे पता चला कि बुढ़ापा खुश है, क्योंकि अभी इंसान जीवित है। हंसती हुई हर चीज अच्छी लगती है, चाहें उसमें कितना पुरानापन क्यों न आ गया हो। उमंग को जीवित रखती है हंसी और एक पल की हंसी कई गुना सुकून पहंचाती है। हम कितनी आसानी से कह देते हैं कि बूढ़ों को हंसना नहीं आता। यह उम्र बीतने का दौर होता है, अंतिम उड़ान और विदाई का वक्त होता है। इसमें मामूली मुस्कराहट भी मायने रखती है। हंसी के साथ जिये हैं, तो अंतिम समय ठहाका लगाने में क्या बुराई है? काकी जिंदादिली की मिसाल थी। पेड़ जर्जर होने पर वीरान लगता है क्योंकि उसकी हरियाली छिन चुकी होती है। इंसान के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है।
-harminder singh