आने दो बुढ़ापे को, देख लेंगे

हमारे एक पड़ोसी को इतनी बेफिक्री है कि वे हमेशा मजे में रहते हैं। टिप-टाप, स्टाइलिस लिबास और हर समय वही मुस्कराते अंदाज में आपको मिलेंगे। उनका परिवार है ही कितना -पत्नि और बेटी।

उनका मत है कि जिंदगी हंसते हुए, मुस्कराते हुए बितानी चाहिए। वे ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि उनकी अच्छी खासी सरकारी नौकरी है। बेटी की शादी को पांच साल से अधिक समय हो गया और चाहिए क्या?

उनकी उम्र 55 से अधिक हो चुकी, मगर आप उन्हें देखकर कहेंगे कि ये 40 साल के करीब ही होंगे। बालों को कलर तो उनकी पत्नि भी करती हैं, लेकिन उनकी उम्र छिप नहीं पाती।

एक दिन ऐसे ही बुढ़ापे पर चर्चा हुई। मैंने पूछा कि आप बुढ़ापे के लिए क्या बंदोबस्त किये हैं?’

वे मुस्कराकर बोले,‘मैं तुम्हें बूढ़ा लग रहा हूं।’

बाद में बोले,‘छोड़ो भी, बुढ़ापा पता नहीं कितनी दूर है। एक्टिव रहता हूं। कुछ भी सोचने की फुर्सत नहीं। अगर बुढ़ापा आ भी गया तो देख लेंगे कि कैसा होता है।’

मैंने कहा,‘आपके आसपास कितने बूढ़े हैं, उन्हें ही देख लीजिए।’

वे इतना ही बोले,‘देखते हैं।’

मैंने सोचा कि लोग कई बार खुद पर कितना यकीन कर जाते हैं। इंसान का शरीर जब तक जबाव नहीं दे जाता, तब तक तरंगे कमाल की बहती हैं। बुढ़ापा एक तरह से इंसानी मशीनरी की सबसे बड़ी खराबी को दर्शाता है।

मशीन खत्म, खेल खत्म। फिर न हम, न तुम!

-Harminder Singh




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