मौत से पहले का खत

प्यारे बेटे,

मैं जीवन के आखिरी छोर पर खड़ा हूं। यहां आगे की राह मुझे स्वयं तय करनी है। लोग कहते हैं रास्ता लंबा है। कितना...... यह कोई नहीं कहता। अकेला मुसाफिर बनने की घड़ी करीब है।

मैंने दुनिया को तुमसे पहले देखा है। जिंदगी के कड़वे-मीठे अनुभवों को जाना है। दुनियादारी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है।

आज वक्त ऐसा है जब मैं अकेला हूं, निराश हूं। मुझे अपनेपन की तलाश है। जीवन की पंखुड़ियां अब कोमल नहीं रहीं। खुरदरापन किनारों को पहले ही तबाह कर चुका। सतह में इतनी गुंजाइश नहीं कि वह ठीक से आसमान को निहार सके।

तुम्हारे लिए, अपने इकलौते बेटे के लिए मैंने अपना सुख-चैन किसी खराब कोने में टिका दिया। तुम्हें काबिल बनाकर मैंने संतुष्टि का अहसास किया। मैंने पाया कि जीवन का असली सुख औलाद को सुखी देखना है। तुम्हारी मां बेटे की कामयाबी से पहले ही ईश्वर के देश में चली गयी। जरुर वहीं से वह तुम्हें देखकर बहुत खुश होती होगी। वह अपने पोता-पोती की शैतानियों को देखकर भी फूली न समाती होगी।

यहां इस आश्रम में मेरी उम्र के ही लोग हैं। उनकी स्थिति मेरी तरह है क्योंकि उनके अपने पास नहीं। लेकिन हमारा एक परिवार ही तो है, बूढ़ों का।

मुझे गिला नहीं कि तुम अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए, मुझे यहां छोड़कर। औलाद कैसी भी हो हर माता-पिता को प्यारी होती है। तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है।

मेरी आखिरी ख्वाहिश यही है बेटा कि मेरी चिता को अग्नि दे जाना, तभी एक ‘अभागा’ पिता खुद को मुक्त समझेगा।

ढेर सारा प्यार।

तुम्हारा पिता

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- by Harminder Singh