मन करता है अकेला चलने का


लगता है कुछ बाकी नहीं बचा जीवन में, इसलिए मन करता है अकेला चलने का।
Priya...

दिल टूटने में वक्त नहीं लगता, फिर लोग दिल लगाते क्यों हैं? यह भी अजीब पहेली की तरह है। इसे इंसान हल कर सकता, उसके जस्बात। प्यार अचानक हुआ किसे मालूम था। दिल कब टूट गया कौन जानता था। इंसान फिर अकेला पड़ गया। अब लगता है कि चुप रहा जाए। तसल्ली दी जाये हृदय को।

लगता है कुछ बाकी नहीं बचा जीवन में, इसलिए मन करता है अकेला चलने का। नीरस लगती है हर प्यार भरी बात, नीरस लगती है मीठी बातें। छिप गयी है वह चमकीली सुबह जिसकी रोशनी में कभी मैं नहाया करता था। वे रास्ते थके मालूम पड़ते हैं जिनपर मैंने खुद को कभी तुम्हारे संग टहलता पाया था। उड़ चुकी है वह मिट्टी की परत जिसपर नंगे पैर हमने अठखेलियां की थीं।

मैंने तुम्हें जाने नहीं दिया, तुम खुद गयीं। हालात ही ऐसे बन गये कि हम दोनों एक-दूसरे से दूरी बना बैठे।

तुम नहीं जानतीं कि हम दूर रहकर भी उतने ही करीब हैं। यह प्यार ही तो है जब हम एक-दूसरे को देखते हैं तो हमारे दिल की धड़कने बढ़ने लगती हैं। सच, मैं इसे ही प्यार कहते हैं।

तुम्हारा

राम.

-Harminder Singh