एक कैदी की डायरी -43

jail diary, kaidi ki diary, vradhgram, harminder singh, gajraula लाजो को शायद मालूम था या नहीं, लेकिन मैं उसे बताने की तैयारी कर रहा था। वह मुझे बहुत अच्छी तरह समझती थी। लाजो को मैं सारी बातें, परेशानियां बता देता था। वह भी मुझसे कोई बात छुपाती नहीं थी। हम एक दूसरे की उलझनों को पढ़कर उनका हल ढूंढ़ने की कोशिश करते। प्राय: हम कामयाब हो जाते।

लाजो को आखिरकार मैंने बता दिया कि लक्ष्मी मुझे अच्छी लगती है। मैंने इतना ही कहा था कि उसने गंभीर भाव से मेरा हाथ कस के पकड़ लिया। मैं हैरत में पड़ गया।

उससे मैंने अपना हाथ छुड़ाया और बोला,‘बात क्या है?’

वह शायद गहन विचार कर रही थी। जब वह लंबी सोच में होती तो उसका चेहरा काफी गंभीर हो जाता। उसने धीरे से कहा कि लक्ष्मी जा रही है। मेरी सांस मानो थम गयी। मैं मूर्ती की तरह जड़ हो गया।

कहां मैं सपनों को बुन रहा था, कहां एक पल में पूरा ताना-बाना उधड़ गया। मैं शिथिल-सा हो गया, एकदम शांत, जैसे सब तबाह हो गया हो। हां, मेरे हृदय से रोया भी न गया। वह बहुत दुखी था। भीतर की वेदना बाहर से नहीं दिखती। मन रोता है तब उसकी आवाज अंदर ही टकराकर रुक जाती है।

मैंने लाजो के कंधे पर हाथ रखकर कहा,‘केवल तुम मुझे छोड़कर नहीं गईं।’

वह चुप रही और मुझे देखती रही। मैंने अपनी दोनों आंखें बंद कीं और मुस्कराया। मेरा हृदय टूट चुका था। लक्ष्मी को एकदम खुद से दूर जाता देख मैं सहन नहीं कर पा रहा था।

तभी किसी ने कहा,‘तुम रो रहे हो।’

मैंने आंखें खोलीं। वाकई उनमें पानी भरा था।

सामने लक्ष्मी खड़ी थी। उसने बताया कि उसका परिवार अब यहां नहीं रहेगा। वे किसी दूसरी जगह जा रहे हैं जहां उसके पिता को अच्छी नौकरी मिल गयी है। लक्ष्मी ने कहा कि उसे मेरी याद आयेगी। इतना कहकर वह चली गयी। मैं ऐसे ही देखता रहा उसे नजरों से ओझल होने तक।

मैं भावुक इंसान हूं। खुद को संभालता आया हूं। पहले भावना में बह जाता हूं, फिर पछताता हूं कि ऐसा क्यों किया? कई बार अचानक ऐसी घटनाएं घट जाती हैं कि हम आसानी से समझ नहीं पाते। लेकिन इतना जरुर होता है कि जीवन पर उनकी अमिट छाप रह जाती है जो याद बनकर कभी भी कचोट देती है।

जारी है....

-Harminder Singh

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