अपना आकलन करना सिखाती है परीक्षा

रिजल्ट की बारी आती है तो बच्चे थोड़ी घबराहट महसूस करने लगते हैं। यह ठीक उसी तरह होता है जैसा परीक्षाओं के दौरान हमें देखने को मिलता है। ऐसा नहीं है कि घबराहट स्थायी होती है, लेकिन इसका असर तो पड़ता है। मुझे आज भी एक्ज़ाम के नाम पर कहीं न कहीं घबराहट महसूस होती है। मैं हर साल कोई न कोई इम्तहान देता हूं।

किसी ने मुझसे पूछा कि आप पढ़ाई कब छोड़ने वाले हैं?

मेरा जबाव था-‘जब जिंदगी मुझसे रुठ जायेगी।’

  सच ही तो है इंसान जीवन भर पढ़ता रहता है। जीवन की एक पाठशाला होती है जिसमें हम जिंदगी के ’क’,’ख’ सीखते हैं। किताबी पढ़ाई से अलग होती है जीवन की पढ़ाई। यहां अक्षर यूं ही नहीं तैर रहे होते। खैर, यह कुछ ज्यादा हो गया।

  दसवीं के इम्तहान के एक दिन पहले मेरी हालत देखने लायक थी। सच में ऐसी घबराहट मैंने पहले कभी महसूस नहीं की थी। परीक्षा स्थल पचास किलोमीटर की दूरी पर था। सफर के दौरान एक बार जी इतना घबराया कि सब बाहर आ जायेगा। ऐसा हुआ भी। खैर किसी तरह बचता-बचाता पहुंच ही गया मुरादाबाद।

  जब रिजल्ट आया तब एक दिन पहले दिल की धड़कन स्वतः बढ़ गयी लेकिन इतनी संतुष्टि जरुर थी कि गणित को छोड़कर दूसरे विषय कुछ बेहतर गये हैं।

  यह मेरी कहानी नहीं है, बल्कि अनेकों बच्चों की धड़कन तेज हो जाती है। यह प्रक्रिया स्वतः ही होती है, लेकिन इसके लिए हम भी जिम्मेदार होते हैं, कुछ हद तक ही मान लीजिए। हम खुद पर उतना भरोसा नहीं कर पाते, शायद यही कारण होता है कि हम परिणाम के समय या उससे कुछ समय पहले बहुत ही घबरा जाते हैं।

जानते हैं हम कि परीक्षायें आसान नहीं होतीं, लेकिन इतना तो भूलना नहीं चाहिए कि परीक्षा हमें नये आधार सिखाती है। हमें यह ज्ञान कराती है कि हम कितने सही या कितने गलत हैं। कुल मिलाकर अपना आकलन करने का मौका ही तो है परीक्षा। खुद को पहचानने का एक शानदार तरीका। 
-Harminder Singh

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