दर्द भरे अल्फाजों का जिक्र मैं करना नहीं चाहता। जिंदगी बेनूर भी लगती है। मगर एक खूबसूरती सिमटी है यहां भी। एक अनोखी अदा जिसका कायल हुआ है सारा जहां। खिलती हुई कलियों को सिराहने रखने से चीजें मुक्कमल होती नहीं दिखतीं, लेकिन महकती रुहें कमाल की लगती हैं।
बूंदों की बनावट को देखता हूं तो खुद को समझा हुआ पाता हूं कि जिंदगी अब मुझसे क्या पूछेगी? सवाल और उनके जबाव ढूंढती जिंदगी की कहानी में रुकावटों का दौर जारी है। बस हूं तो मैं, तन्हाइयों से जूझता।
उस तरावट की खोज कर रहा हूं जो कभी आसपास बसती थी। मुश्किल होते हुए भी आसानी लहराती थी। उम्र की बानगी ही कुछ ओर थी।
एहसासों की कब्र पर फूल बिखरे हैं। मन थोड़ा नाजुक हो चला है। थक कर लगता है, जैसे ओर चलने का मन नहीं करता। तलाश थी कितनी जो पूरी हुई। राह अभी जारी है। क्या यही जिंदगी है?
कुछ कहने का मन है:
’‘वक्त और मैं,
अकेलापन अनजाना,
सितम जिंदगी का,
कोना सूना, वीराना।’’
-Harminder Singh