जिंदगी की रोशनाई

जिंदगी की रोशनाई कई बार लगता है फीकी पढ़ गयी है। रूठी बातों का भी कोई शिकवा नहीं। कुछ अपनेपन को हमने सिमेटा था उसके लिये। वह चुपचाप रही। हम भी न बोले। यह जिंदगी की रूह का नमूना था। अब हाथ थामने कोई नहीं आता।

मेरी पलकों में नमीं कहां से उतर आयी। यह भी वह बता गयी। था उसके लिये जो दिल में बसा, वह जता गयी। दोनों ओर था खामोशियों का सिलसिला, लेकिन जीवन की डोर को उसने बांध दिया।

अनजाना राही जो था कभी आज खुद को पहचान सकता है। लगता है जैसे दो दिन की बात हो।

जीवन की रोशनाई महक छोड़ रही है। हम जीवन नहीं छोड़ रहे। यह मुकाम है कहने को पर आसमान भी नीला होता है।

-harminder singh

previous posts :

.......................................................
माता-पिता और बच्चे
 .......................................................
 कल्पना का उत्सव
 .......................................................
बुद्धि और विवेक हैं सबसे बड़े सलाहकार 
.......................................................
जाते-जाते वह कितना सिखा गया
.......................................................
बरसात की सर्द रात  
.......................................................