दो पल सुकून के

जिंदगी तेज भाग रही है। न वह चैन से है, न हम। ऐसा लगता है जैसे होड़ लगी हो कोई। बस हर कोई दुआ मनाये ताकि उसे मिल जायें दो पल सुकून के!
हमारी जिंदगी व्यस्त है। कई बार इतनी कि खुद के लिये समय निकालना भी मुश्किल हो जाता है। सप्ताह में छुट्टी का दिन आता है तो कुछ सुकून मिल जाता है। 

सुभाष शनिवार को काम से जल्द लौटने की सोच रहा था। संयोग से काम जल्द निपट गया। यह पहली बार था कि वह अपने परिवार के साथ सूरज ढलने से पहले होगा। 

उसने मुझसे कहा कि बाजार जाकर कुछ सामान लाना है। आज परिवार के साथ अर्से बाद वक्त मिला है। लेकिन पहले वह घर होकर आयेगा। 

लगभग बीस मिनट बाद कपड़े बदलकर वह आया। कार में सवार होने के बाद उसने पुराने गाने बजा दिये। मुझे मालूम नहीं था कि वह उनका शौक रखता है। मैंने कहा-"ये गीत मन को ताजा कर देते हैं।"

उसने कहा-"जिंदगी सुबह से शाम तक भागदौड़ भरी रहती है। कुछ पल सुकून के ऐसे ही मिलते हैं।"

हम हाइवे पर थे। सूरज अभी डूबा नहीं था। लेकिन किरणें शीशे को पार कर आ रही थीं। चंद मिनटों बाद वह लाल गोलाकार हुआ और आखिरी वक्त की तैयारी में लग गया, फिर अस्त हो गया। 

सुभाष ने बताया-"जब मैं घर पहुंचा तो हर कोई हैरान था क्योंकि उन्होंने कभी सोचा नहीं कि हम 6 बजे एक साथ होंगे। रविवार को मैं कहीं जाता नहीं।"

बाजार पहुंचकर वह खरीददारी में व्यस्त हो गया। मुझे भी घर पहुंचना था क्योंकि एक असाइनमेंट पूरा करना था। सुभाष को अलविदा कर मैं तेज कदमों से चल पड़ा। 

रास्ते में सोचने लगा कि जिंदगी तेज भाग रही है। न वह चैन से है, न हम। ऐसा लगता है जैसे होड़ लगी हो कोई। बस हर कोई दुआ मनाये ताकि उसे मिल जायें दो पल सुकून के!

-हरमिन्दर सिंह.

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