कीचड़, फिसलन और मैं


बारिश के बाद कीचड़ हो जाये तो किसी की भी हालत खराब हो सकती है। बात यदि ऐसे कच्चे रास्ते की जाये जहां नीचा होने के कारण फिसलने का भय बना रहता है तो वहां हर कोई जाने से तौबा करेगा। लेकिन मैंने नहीं की।

 मेरे मित्र ने कहा कि दूसरा रास्ता है, यहां से गुजरना मुश्किल हो सकता है। उसकी गलती इतनी थी कि उसने ‘हो सकता है’ कह दिया था। मेरे जैसे व्यक्ति को आड़े तिरछे रास्तों पर चलना कभी बुरा नहीं लगा। ऊपर से ‘हो सकता है’ को मैंने गंभीरता से लिया।

 पता था मुझे कि आगे खतरा हो सकता है। फिसलन के कारण घटी कई दुखदाई कहानियां और किस्से मैंने सुन रखे थे। क्या करें मन नहीं माना और न मान सकता था। जिसकी ठान ली उसे अधूरा छोड़ना खुद को कमजोर साबित करने के बराबर था।

 मित्र का चेहरा देखने लायक था। वह भी जानता था कि मैं जिद्दी भी हो जाता हूं। दूसरों की बात को ऐसे मौके पर नजरअंदाज करने के सिवा कोई चारा नहीं बच पाता।

कीचड़ भरे रास्ते को दूर से देखकर कोई भी कह सकता था कि जो भी गुजरेगा उसका बैंड बजना स्वभाविक है। हड्डियों की मरम्मत करवाने के लिये हमें अस्पताल जाना पड़ सकता है। खुद का इलाज कई दिनों तक चल सकता है। यह आप पर निर्भर करता है कि आपकी सहत कैसी है। हट्टे-कट्टे लोगों की हड्डियों के लिये खतरा उतना नहीं।

 मित्र ने कहा कि वह दूर रहेगा। कोई तामीरदार की भूमिका में भी होना चाहिये। स्थिति किसी जंग से कम नहीं थी। उसके दिल की धड़कन पहले से तेज हो गयी थी।

 मैंने कदमों को बेपरवाह होकर आगे बढ़ाया। ‘क्या डर है। बिना मतलब के हव्वा बना रखा है।’ मैंने खुद से कहा।

 कुछ दूर ही चला कि फिसल कर गिर पड़ा। पहले केवल पैर कीचड़ में सने थे, अब तो मैं कीचड़ में था। मेरे दावे की हवा निकल चुकी थी। कई दिन अस्पताल में बिताये। उस दिन के बाद ठान ली कि कभी भी ऐसे रास्तों से नहीं गुजरुंगा जहां खतरा हो। पर क्या करें, मन है की मानता नहीं। उस रास्ते दो बार कोशिश की लेकिन हर बार फिसला। शुक्र यह रहा कि हड्डी-पसली नहीं टूटी। तीन विफल प्रयासों के बाद मैंने वहां से गुजरना छोड़ दिया। मगर मन के किसी कोने में एक ख्याल बाकी है।

 हम जानते हैं कि जिंदगी के कई पहलू हैं। रास्ते उतार-चढ़ाव वाले भी हैं। हर बार मुश्किल राह से सफलता नहीं मिलती। कई बार आसान राहें भी हैरानी में डाल देती हैं।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.

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