मेरा दोस्त

friendship friends

बचपन में मेरा एक दोस्त हुआ करता था। वह साइकिल का उस्ताद था। कभी-कभी वह स्टंट भी दिखाया करता था। मुझे घबराहट होती कि कहीं वह ऐसा करते हुए गिर न जाये। उसका लेख बहुत अच्छा था। मुझे याद है कि चौथी और पांचवी कक्षा में हम दोनों के नंबर भी लगभग एक जैसे आते। तीन-चार विषयों में हम 19-20 ही थे। 50 नंबर में उसके कभी पूरे, कभी एक-दो नंबर आगे-पीछे हो जाते थे। वही मेरा हाल था। पता नहीं क्यों वह मेरा सबसे अच्छा दोस्त था। बहुत समय से उससे मुलाकात नहीं हुई। चाहता हूं कि अब उससे मुलाकात हो सके। हालांकि फेसबुक पर वह मेरे साथ जुड़ा है, लेकिन व्यस्तता के चलते हमारी बात नहीं हो पाती। वैसे भी जो मजा आमने-सामने का है वह और कहां।

 जब हम बड़े हुए तो अपने-अपने रास्ते चल दिये। मैं उसी शहर में रह गया। वह दूसरी जगह चला गया। जानते हैं हम कि परिस्थितियां कितनी अजीब होती हैं। हम न चाहते हुए भी बदलाव करने को राजी हो जाते हैं और भविष्य के लिहाज से यह बहुत बार सही भी होता है।

 वह दो-तीन बार हमारे घर आया भी, मगर थोड़ी देर के लिए। इतने में कहां ढेर सारी बातें हो पाती हैं। मैं भी और वह भी खूब बोलना चाहते थे। एक-दूसरे की बीती बातों को फिर समेटना चाहते थे। फिर से उन दिनों में जाना चाहते थे जो खूबसूरत थे। जाना चाहते थे वहां जहां हम खेला करते थे। वह खिलखिलाता और मैं भी। सचमुच वे दिन शानदार थे। उन्हें लौटकर आना पड़ेगा। पर ऐसा मुमकिन नहीं।

 उसके नाम का जिक्र मैंने कहीं किया नहीं, लेकिन वह पढ़ेगा तो समझ जायेगा कि यह लिखा उसके बारे में है। यह बताने की जरुरत नहीं कि हम आज भी उतने पक्के दोस्त हैं। हमारी दोस्ती वक्त के साथ और मजबूत हुई है।

 हमें पता है कि दोस्ती जिंदगी का एक प्यारा तोहफा है जो हमें मिला है। जिससे हमारी जिंदगी संवरी है और वक्त को हमने खुलकर जिया है।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.
इन्हें भी पढ़ें :