एक दोस्त था कभी जो अब रूठा है। उसे मनाने की सोची लेकिन बात नहीं बनी।
वह भी मेरी तरह ही निकला। कहता नही छिपाता है।
दूसरा दोस्त भी चला गया। मालूम था मुझे कि वह कुछ दिन का मेहमान है, लेकिन मैं उससे पक्की दोस्ती कर बैठा। अब भूल नहीं पा रहा।
क्या करूं..कुछ समझ नहीं आ रहा।
दो लोग आज छूट गये मुझसे ....शायद हमेशा के लिये।
...लेकिन मैंने उनके नाम का एक पौधा लगा दिया जो मुझे हमेशा उनके करीब रखेगा।
वे दोस्ती निभा न सके....मैं निभाऊंगा।
-हरमिन्दर सिंह चाहल
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