बाबा बाबा तुम क्या जानो,
भूल गये सब मोह-माया,
कहते थे कभी -
"सांसारिकता से किसने क्या पाया?"
"सांसारिकता से किसने क्या पाया?"
आज तुम गये बदल,
करते हो आनाकानी,
करते हो आनाकानी,
बहका रहे लोगों को,
भ्रम में जनता अनजानी,
भ्रम में जनता अनजानी,
क्या करोगे भला किसी का बाबा तुम,
डर कर जीना सीखा रहे हो,
डर कर जीना सीखा रहे हो,
सादा, सरल, बिन भय का जीवन जियो,
क्यों भक्तों को बहका रहे हो,
क्यों भक्तों को बहका रहे हो,
बाबा क्या है आपका असली चेहरा,
हम धीरे-धीरे मान रहे,
हम धीरे-धीरे मान रहे,
सभी बाबा एक समान,
हम अब पहचान रहे,
हम अब पहचान रहे,
संत बने हैं, साधू भी,
भेष बनाये कितने,
भेष बनाये कितने,
बहरूपिये फिर रहे,
रंगे सियार जितने,
रंगे सियार जितने,
बचना ऐसे पाखंडियों से हमें,
नहीं चाहिये इनसे उपकार,
नहीं चाहिये इनसे उपकार,
पहले देखें खुद को,
बाद में करें दुनिया का उद्धार।
बाद में करें दुनिया का उद्धार।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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