मैं कहता हूं कि तू ये काम न कर,
खुद के खातिर किसी को बदनाम न कर।
साकिर बनकर जी ज़माने में गाफिल,
खुद के खातिर किसी को गुलाम न कर।
ता-उमर उसी में खो जायेगा तू,
किसी जुल्फ के साये में आराम न कर।
न ले रिस्क का लुत्फ राही आगे बढ़,
इश्क के मोड़ पे वक्त नाकाम न कर।
‘अमर’ अब आबरु का अदब करना सीख,
शर्म के शब्द को यूं सरेआम न कर।
-अमर सिंह 'गजरौलवी'
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