विचार मद्धिम हैं,
होड़ है मस्तिष्क में तूफानी,
विचित्र कथा जीवन भी,
बात समझ न आनी,
पल में शुरू, पल में खत्म,
वेग अचरज भरा,
टूटी डाली, टूटा मन,
था कभी जो हरा,
घिसटता, अटकता, अपराधी समझता,
स्वयं हताश खड़ा है,
खाली नहीं, भरा नहीं,
यह जो विचारों का घड़ा है।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
होड़ है मस्तिष्क में तूफानी,
विचित्र कथा जीवन भी,
बात समझ न आनी,
पल में शुरू, पल में खत्म,
वेग अचरज भरा,
टूटी डाली, टूटा मन,
था कभी जो हरा,
घिसटता, अटकता, अपराधी समझता,
स्वयं हताश खड़ा है,
खाली नहीं, भरा नहीं,
यह जो विचारों का घड़ा है।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.