उम्रदराज़ी

भूल जाता हूं कुछ बातों को,
दिक्कत है चलने में भी,
मानो छिन गयी है आज़ादी,
मुबारक मुझे उम्रदराज़ी,

सुबह उठकर देख रहा सूरज को,
चमक में है नहाया,
पता नहीं क्यों सुस्ती मुझपर हावी,
कारण है मेरी उम्रदराज़ी,

कदमों में फुर्ती नहीं,
कमर में तनाव बह रहा,
हार रहा जिंदगी की बाज़ी,
धीरे-धीरे पसर रही उम्रदराज़ी,

कांप रही आवाज़,
देह को सुकून नहीं,
कहीं खो गयी ताले की चाबी,
वाह री उम्रदराज़ी।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.