बेखुदी का दौर है जो बढ़ता चला गया,
हर शख्स हर नज़र से अब गिरता चला गया।
दिल टूट-टूट कर भी रोता रहा, लेकिन
वो सितमगर अपना काम करता चला गया।
अपना समझकर जिसके करीब हम पहुंचे,
वो गिरगिट की तरह रंग बदलता चला गया।
जिस को हंस कर हमने प्यार से पुकारा,
वही जालिम हमें घूरता चला गया।
सरे-हयात जो ख्यालों में ही रहे ‘अमर’,
उसी के रुबरु ये दिल झपता चला गया।
-अमर सिंह ’गजरौलवी’.
अमर सिंह ’गजरौलवी’ की अन्य रचनायें पढ़ें
हर शख्स हर नज़र से अब गिरता चला गया।
दिल टूट-टूट कर भी रोता रहा, लेकिन
वो सितमगर अपना काम करता चला गया।
अपना समझकर जिसके करीब हम पहुंचे,
वो गिरगिट की तरह रंग बदलता चला गया।
जिस को हंस कर हमने प्यार से पुकारा,
वही जालिम हमें घूरता चला गया।
सरे-हयात जो ख्यालों में ही रहे ‘अमर’,
उसी के रुबरु ये दिल झपता चला गया।
-अमर सिंह ’गजरौलवी’.
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