उम्र : एक कविता
उम्र केवल गिनती नहीं होती,
वह तो दिखती है चेहरे की रेखाओं में,
सुनने के उपकरणों में,
मोटे-मोटे चश्मों में,
झाँकतीं मिचमिचाती बेचैन,
बेज़ार आँखों में
कुपोषित कमजोर देह में,
उठने, बैठने, चलने की लाचारी में,
हर बात में इज़ाज़त माँगती,
मज़बूरी में,
असाध्य बीमारी में,
खाँसी से कमजोर छाती में,
निशदिन मौत माँगती,
भगवान से मरने की
प्रार्थना में.
यदि यह सब बातें
उम्र का परिचय देती हैं,
तो इसे ही उम्रदराज़ होना भी कहते हैं,
और मजबूरी में जिंदगी जीना भी इसे ही कहते हैं.
-अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव