बूढ़ा हुआ तो क्या हुआ?
बूढ़े अक्षरों की बनावट कहानी कह रही,
दास्तान अजीब है,
खुरदरापन लिए चेहरे,
हाथों में नमीं नहीं,
ढहने को विवश लोग,
बर्तन दर्द से भरे,
हंसी तो मानो गायब है।
उम्र है ऐसी,
बातें हैं ऐसी,
तन्हाई का दौर है,
सिमट रहा कोई,
अकेलापन घेर रहा,
वह मैं हूं,
हां मैं ही।
सजावट नहीं रही बाकि,
रुलता भी हूं,
फिरता भी हूं,
आस नहीं छोड़ी जीने की,
बूढ़ा हुआ तो क्या हुआ?
अड़ना मैं जानता हूं।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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