जिंदगी की खुली किताब है,
अक्षरों का बिखराव है,
सजीवता का साथ है,
उम्र का हिसाब है,
मन बोल रहा,
तन डोल रहा,
कांपते हाथ बिना थके,
कदम लड़खड़ाये बिना रुके,
हिसाब मांग रही जिंदगी,
ये कैसी बंदगी,
क्यों बुढ़ापा है हैरान,
क्यों इतना परेशान,
लेकिन हौंसला रखता हूं,
उम्र का स्वाद चखता हूं,
विदाई होगी यह है तय,
फिर मरने से क्या भय?
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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