उसने कहा था

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बूढ़ी काकी जीवन के पुराने पन्नों को पलट रही है.  उसके चेहरे पर खुशी की लकीरें फूट रही हैं.

‘तुम मेरी प्रेरणा हो। तुम्हारी वजह से मेरा जीवन बदल गया। मैंने महसूस किया कि अगर तुम न होतीं तो मेरा क्या होता? –ऐसा उसने कहा था।’ इतना कहकर काकी चुप हो गई। ‘उसने कहा था कि मैं उसके जीवन की अभिलाषा हूं, जीने की आशा हूं। जबसे वह मुझसे मिली उसके अनुसार उसका संसार सुन्दर हो गया। वह मेरी सहेली थी, सबसे अच्छी सखा। मैं उसे कैसे भूल सकती हूं। नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि कुछ लोग बहुत अलग होते हैं। इतने अलग कि उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। मुझे भी ऐसे ही समझ लो।’

बूढ़ी काकी जीवन के पुराने पन्नों को उलट रही है। धीरे–धीरे उसके चेहरे पर खुशी की लकीरें फूट रही हैं। वह मुझे अपनी सच्ची सखा से रुबरु करा रही है। वह यादों के झरोखे से वह सबकुछ उसी तरह देख पा रही है, जैसे कल की ही बात हो।

जानता हूं मैं कि उम्र से यादों की डोर ढीली नहीं पड़ती, यह सिर्फ हमारा भ्रम है कि जिंदगी की याददाश्त छोटी होती है। यदि हम यादों को अच्छी तरह से समेटने की कला में महारथ हासिल कर लें तो चीज़ें आसान हो जाती हैं। जीवन में पुराने दिन फिर लौट कर नहीं आते। इसलिए उन्हें यादों में संजोया जाता है और जीवन के सुरों को संभाल कर रखना, खुद को उम्रभर संभालने के समान है।

मैंने काकी से कहा -‘आपने वाकई महसूस किया कि मित्र का होना जरुरी है। बिना उसके जीवन अधूरा है। मेरे पास ऐसा कोई नहीं जिसे मैं अपने हृदय का हाल बता सकूं। कभी–कभी लगता है जैसे जीवन नीरस हो गया। कभी–कभी लगता है जैसे मैं पीड़ा को छिपा कर दफन कर दूं, पर ऐसा हो नहीं सकता। मुझे खुद दफन होना होगा। कभी-कभी मुझे खुद को मानना भी पड़ता है कि मैं अकेला नहीं हूं, इतने लोग तो हैं आसपास मुझे संभालने के लिए, लेकिन मेरे मन को लगता है कि मैं कुछ छुपा रहा हूं, जबकि ऐसा है नहीं।’

बूढ़े लोगों की बातों को मैं ध्यान से समझता हूं। उनसे सीखें बिखरती हैं जिन्हें हमें चुनता रहना चाहिए। इन सबका मतलब है, जिसके परिणाम आज नहीं, तो कल अवश्य मिलेंगे। भविष्य पर हक कोई जता नहीं सकता। हां, इंतजार किया जा सकता है। इसके लिए मैं तैयार हूं।

काकी आगे कहती है -‘उसने यह भी कहा कि हमारी मित्रता लंबी चलने वाली है। इतनी लंबी कि हमें खुद पता न लगे कि हम इतने घनिष्ठ अब ही हुए हैं, या पहले से थे। जन्मों तक नाता न तोड़ने का वादा हमारे मन को अजीब एहसास से भर गया। शायद कुछ रिश्ते ऐसे ही होते हैं जो व्यक्ति को व्यक्ति से हद तक जोड़ देते हैं। मेरा रिश्ता मेरी सखा के साथ ऐसा ही था। वह घंटों मेरे साथ बातों में खोयी रहती। समय बीतता जाता, मगर बातें खत्म नहीं होतीं।‘

‘खून के रिश्तों से अलग होता है दोस्ती का रिश्ता। यह ऐसा रिश्ता है जब इंसान इंसान से इस कदर जुड़ जाता है कि वह संसार की उलझनों को भुला देता है और स्वयं को उन्मुक्त पाता है।’

अब काकी भावुक होती जा रही थी। उसकी झुर्रियों में कसावट का अहसास मुझे हुआ। ऐसा लगा मानो वह उस युग में पहुंच गयी जब उसकी सखा उसकी आंखों में झांक रही थी। उन दोनों ने अपने हाथ एक दूसरे के हवाले किये हुए थे और वे पल शानदार और अद्भुत थे। जरुर काकी अपनी जिंदगी के उन पलों को आज जिन्दा महसूस कर रही है। जैसे यादें फिर से जीवित हो गयी हों।

‘वह चली गयी। मैं पीछे छूट गयी, यहां इसी जगह तुमसे बातें करने को। अकेली हूं, पर वह मेरे ख्यालों में उसी तरह बसी है। शायद हम इतने अधिक प्रेम में पड़ जाते हैं कि जिन्हें हम लगाव करते हैं, उन्हें भूल नहीं पाते। जिंदगी कहती है कि कुछ लोग इतनी आसानी से भूले नहीं जाते। यादों में रहकर हम उन्हें याद करते हैं। इसी तरह वे हमसे बातें करते हैं, इसी तरह।’

‘शब्दों की भाषा नहीं, लेकिन शब्दों से कम नहीं। वह अब भी मेरे सामने खड़ी मुस्करा रही है। यहीं आसपास है वह, मेरे पास। मैं बूढ़ी हो चुकी हूं, वह अभी तक जवान है। देखो उसके चेहरे पर एक भी झुर्री नहीं है। कितना सुन्दर लग रही है मेरी सखा। हां, मैं उसे महसूस कर रही हूं, बिल्कुल अपने करीब पा रही हूं मैं उसे।‘

बूढ़ी काकी अपनी बूढ़ी हंसी के साथ मुझे देख रही थी। मेरी आंखें उसके सफ़ेद बालों में जीवन की गाथाओं को ख़ोज रही थीं। बालों के रेशों में अनगिनत कहानियां छुपी थीं जो जीवन के अनसुलझे रहस्यों को दिखा रही थीं। मुझे और गहरायी से उनमें ग़ुम जाना था ताकि दबी परतों को हटा सकूं। जीवन को समझने का इससे अच्छा जरिया और क्या हो सकता है। वैसे भी बुढ़ापे में उम्र भर का लेखा जोखा जो इकट्ठा हो चुका होता है। जीवन के लिए बुढ़ापा ऐसा माध्यम है जब इंसान सवाल और जवाब के फेर से पार जा चुका होता है।

लोग बूढ़े हो जाते हैं, विचार बूढ़े नहीं होते। यही कारण होता है कि बुढ़ापे में विचारों की उथलपुथल सामान्य नहीं होती। मन में कई बातें होती हैं जिन्हें किसी अपने से कहने की इच्छा होती है।

ऐसा लगता है दर्द हर किसी के सीने में है। कुछ उसे बयान करते हैं, कुछ नहीं। एक बात जो सबसे अजीब है कि लोगों ने 'खुद' को छिपाने में महारथ हासिल कर ली है। शायद ज़िन्दगी यह कहती भी है कि ओढ़कर कुछ आये, या ज़िन्दगी में छुपाने को कुछ ख़ास नहीं।

यदि उसे हम पहले से जानते हैं तो सब आसान हो जाता है। और यदि सखा मिल जाए तो शुष्क शाखायें हरी होने में देर नहीं करतीं। ऐसा कुछ शेष नहीं रह जाता जो कहा न जाए। बातों की नदियां बह जाती हैं। दुख–दर्द मानो सिमट गये हैं– ऐसा अहसास होता है। उस समय संसार निर्जन, सूखा रेगिस्तान नहीं रह जाता। सूखे पत्ते फड़फड़ाहट नहीं करते, बल्कि उनकी शुष्कता तरंगित होती दिखती है। सुख की बीणा बजती है। उल्लास छा जाता है। फिर से लौट आते हैं वे पल जो किसी कोने में पड़े रह गये थे, यूं ही। जिन्हें कभी भुला दिया गया था, फिर याद न करने के लिए, वे सब छंट कर सजीव हो जाते हैं। मित्र की मित्रता निराली है। सुख का भागी, दुख का साथी। सब कुछ और बहुत कुछ है वह। मित्र का हाथ थामा है, कभी न छोड़ने के वादे के साथ।

-हरमिंदर सिंह.