जिंदगी तो रोज छपती है

ज़िन्दगी-लाइफ-प्रकृति

ज़िन्दगी एक ख्वाहिश के साथ है जो एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव गुज़रती रहती है.

जिंदगी तो रोज छपती है,
कभी इस पड़ाव, कभी उस पड़ाव,
जिंदगी सवाल करती है,
कभी सीधे, कभी आड़े-तिरछे,
जिंदगी मचलती बड़ी है,
कभी फिसलकर, कभी इठलाकर,

देखता हूं, कभी-कभार मैं भी,
ऐसा क्यों नहीं कि मैं हंसता रहूं हर पल,
मुमकिन जो भी है, पर पूरा नहीं,
यही खासियत है जिंदगी की,
उधड़ती-सिलती-चलती-दौड़ती है,

जिंदगी उड़ान भरती है,
कभी गोते लगाकर, कभी सरसराकर,
जिंदगी मुश्किल साज है,
कभी गुनगुनाकर, कभी सुर लगाकर,
जिंदगी बहती नदी है,
कभी बहकर, कभी सहकर।

-हरमिन्दर सिंह.