बुढ़ापे में जिंदगी के तार जवानी से ज्यादा उलझे हैं

धुंधले शब्द जोड़-तोड़कर अपने बल पर किस्मत की रचना करना उम्रदराजों के लिए कोई नया नहीं.

‘उम्र का फासला हमारी जिंदादिली को बयां नहीं करता।’ बूढ़े काका ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। वे दूर कहीं किसी खोज में लगे हुए थे। ऐसा उनकी आंखें बता रही थीं। चेहरे पर एक अधूरी मुस्कान से अनगिनत कहानियों का सैलाब भी टूटकर बिखरने को तैयार था।

‘आपने जिंदगी की पढ़ाई मुझसे ज्यादा की है, काका।’ मैं जानता हूं कि काका ने जिंदगी को उसी तरह समझा है जैसे बूढ़ी काकी ने। वे बिना थके आज भी निरंतर जिंदगी के तारों की उलझन को एक-एक कर सुलझाने की कोशिश में लगे हुए हैं। कमाल है न, कि जिंदगी उलझी हुई है, सुलझी हुई भी है; तारों की इस उधेड़बुन में रंगों की छटा अपनी ही बात कह रही है। धुंधले शब्दों को जोड़-तोड़कर अपने बल पर किस्मत की रचना करना उम्रदराजों के लिए कोई नया नहीं। वे तो मन को दौड़ाते ही इसलिए हैं ताकि कुछ पाया जा सके। ऐसा कुछ जो सिलवटों की गहराई में छिपे हुए राजों को बाहर निकाल सके। ऐसा कुछ जो सच को बता सके। ऐसा कुछ जो जिंदगी की रोशनाई में डूबे हुए कलम से सुन्दर लिखावट कर सके।

बुढ़ापे-में-जिंदगी-के-तार-जवानी

बूढ़े काका कहने लगे,‘बुढ़ापे में जिंदगी के तार जवानी से ज्यादा उलझे हैं। दिक्कत कुछ नहीं, बस इतनी मान लीजिये कि कोहरा समय के साथ घना होता जा रहा है। मन मान रहा है या मन को मना रहे हैं, पता नहीं रहता। है कुछ जो पहले नहीं था, अब है और जो कुछ होने वाला है, शायद उसका अनुभव भी पहले से होता जा रहा है। पता नहीं बूढ़ों को ऐसा क्यों बनाया है?’

‘मगर एक बात जो सबसे मजेदार है। हम जिंदादिली की मिसाल भी बने हैं।’ इतना कहकर काका ने हल्का सा ठहाका लगाया। वे शब्दों को चुन-चुनकर बिखेर रहे थे। मैं चुनने में लगा हुआ था यही सोचकर कि बुढ़ापा अनुभव, विचार और संयोग के मंथन से जिंदगी को नये आयाम दे रहा है। उम्रदराजी एक सीमा को दूसरी सीमा से मिला रही है ताकि भविष्य में कई सवालों को जवाब का इंतजार न करना पड़े।

मैं सोच रहा हूं कि खोयी हुई आंखों से जीने का अंदाज नहीं बदलता। झुकी हुई कमर से उम्र नहीं दिख जाती और खामोशी सबकुछ बयां नहीं कर देती। लेकिन एक बात जरुर है कि बुढ़ापे में जिंदगी की सूरत और उसे देखने का नजरिया बदल जाता है। मेरे जैसे जाने कितने लोग मुस्कान की एक छींट से खुद को हरा महसूस करते हैं। मैं बूढ़ा नहीं, मगर हर बूढ़ा यही करता है। एक कतरा खुशी का उसके लिए मीठे संगीत की तरह है। उसका रोम-रोम हर्षाता है। वह भी जवानी में नाचने लग जाता है। जिंदगी की उलझन, उम्र की व्यथायें कहीं किसी कोने में मानो छटपटा रही होती हैं। बुढ़ापे की जिंदादिली हवा में तैर रही होती है। अब तो मान लीजिये, संगीत की लय उम्रदराजी में फीकी नहीं, मीठी भी होती है।

-हरमिंदर सिंह.

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