जीवन संध्या में एकाकी क्यों?

हमारे बुजुर्ग अपनों की उपेक्षा के शिकार हैं और जीवन के आखिरी दिनों में मायूस भी हैं..

"अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम॥"
अर्थात “नित्य गुरुजनों का अभिवादन और वृद्धों की सेवा करने से आयु, विद्या, यश एवं बल की वृद्धि होती है।

जब हम उनके आगे झुक कर उनके पांवों को छूते हैं या हाथ जोड़ कर शीश नवाते हैं तो एक जोड़ी कांपते हाथ उठ कर हमारे सिर पर आते हैं। उस समय मिलने वाली प्रसन्नता की कल्पना नहीं की जा सकती जो दोनों पक्षों को मिलती है। वे लरजते कंपकपाते अधरों से सारे जहां की खुशियाँ हमारी झोली में भर देना चाहते हैं।


यह दीगर है कि कोई विरला ही इस बात की गहराई को समझ पाता है। कुछ फीसद की राय में घर में बुजुर्गों को सम्मान दिया जाता है। पर असलियत में परिवार के युवा घर के बुजुर्गों को हल्के में लेते हैं और बुजुर्ग उन पर अधिकार तक नहीं जताना चाहते। वह उस उम्र में भी सक्रिय रहना चाहते हैं। सर्वेक्षण की रपट की मानें तो 50 फीसद लोग मानते हैं कि कार्यस्थलों पर भी उनके साथ भेदभाव होता है जिसके चलते उनकी पदोन्नति प्रभावित होती है। यानी बुजुर्ग हर जगह उपेक्षित हैं और युवा पीढ़ी उन्हें बेकार मानने लगी है। वह नहीं सोचती कि उनके अनुभव उनके लिए बहुमूल्य हैं जो उनके जीवन में पग-पग पर महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

हम अक्सर ऐसे बुजुर्गों से मिलते है जो अपना जीवन बड़ी मुश्किल में गुजार रहे हैं। उनको कहने को तो सभी सुविधाएं दी जाती हैं लेकिन जिसके वे असल मे हकदार हैं उसी से वंचित हैं। उनके जीवन के इस पड़ाव पर उन्हें सबसे ज्यादा देखभाल की अवश्यकता होती है। उनमें और एक छोटे बच्चे में बहुत कम फर्क रह जाता है। वे अपनी वर्तमान उम्र से बहुत पीछे चले जाते हैं और उस उम्र को पुनः जीना चाहते हैं।

बीते दिनों रिसर्च एंड एडवोकेसी सेंटर ऑफ एजवेल फाउंडेशन के एक सर्वेक्षण में खुलासा हुआ कि हमारी युवा पीढ़ी न केवल वरिष्ठजनों के प्रति लापरवाह है, बल्कि उनकी समस्याओं के प्रति जागरूक भी नहीं है। वह पड़ोस के बुजुर्गों के सम्मान में तो तत्पर दिखती है लेकिन अपने घर के बुजुर्गों की उपेक्षा करती है, उन्हें नजरअंदाज करती है। सर्वेक्षण के अनुसार 59.3 फीसद लोगों का मानना है कि समाज व घर में बुजुर्गों के साथ व्यवहार में विरोधाभास है। केवल 14 फीसद का मानना है कि घर-बाहर, दोनों जगह बुजुर्गों की हालत में कोई अंतर नहीं है जबकि 25 फीसद मानते हैं कि घर में बुजुर्गों का सम्मान खत्म हो गया है। मैंने अपने एनजीओ के माध्यम से एक वृद्धाश्रम का सर्वेक्षण किया। वहां पर स्थित बुजुर्गों की व्यथा-कथा ने मुझे अंदर तक झिंझोड़ा। मुझे उन सभी बुजुर्गों के विषय मे कुछ लिखने की तीव्र उत्कंठा जागृत हुई जो अभिशापित जीवन जीने को मजबूर हैं। यह प्रश्न जटिल भी लगता है और इसे जानकार हैरानी होती है कि हमारे बुजुर्ग जीवन संध्या में एकाकी क्यों हैं?

समयानुसार सब कुछ बदल जाता है. उम्र के साथ कई चीज़ें भी बदल जाती हैं, और विचार भी. नई पौध बड़ी होती है, उसे फैलने के लिए खुला आसमान चाहिए. 

अमूमन होता यही कि लोग अपने बुजुर्गों को वो सम्मान और अधिकार नहीं देते जिस पर उनका हक है। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि कुछ बुजुर्ग अपने को उपेक्षित मानते हैं जबकि असलियत में वे होते नहीं। वे दूसरों को देख कर स्वयं को भी उसी श्रेणी का मान लेते हैं और अपने जीवन में खुद ही जहर घोलने का काम करते हैं। किसी के कष्ट को देखकर उसे महसूस करना उसके लिए कुछ करना एक अलग बात है लेकिन उसे खुद पर ओढ़ लेना और जो कुछ भी उनके साथ होता है उसे ये मान लेना कि उनके साथ भी ऐसा ही किया जा रहा है। उनके बच्चे उनके साथ ऐसा ही कर रहे हैं, सदैव शक की निगाहों से देखना। ये अच्छी बात नहीं, इससे बुजुर्ग स्वयं अपने जीवन को कष्टमय बना लेते हैं क्योंकि जब उनके बच्चे दूसरों से घर के बुजुर्गों द्वरा की गयी अपने खिलाफ बातें सुनते हैं तो उनका दिल टूट जाता है। और फिर विघटन होना शुरू हो जाता है। ऐसे में एक-दूसरे के साथ बैठ कर बात को सुलझाना बहुत जरूरी होता है। कहीं-कहीं बुजुर्ग अपनी जिद पर अड़ जाते हैं और ज़ोर से चिल्लाकर अपनी कहते हैं कि वे जो कुछ कर रहे हैं या कह रहे हैं वो ही सही है। परिवार का दारोमदार सिर्फ और सिर्फ उन ही के कंधों पर है और वे ही परिवार रूपी नाव के खिवैया हैं। ये सच है कि वे अब तक बहुत अच्छी तरह से इस नाव को खेते आए हैं और भली-भांति संचालन भी करते रहे हैं।

समयानुसार सब कुछ बदल जाता है। नई पौध बड़ी होती है उसे फैलने के लिए खुला आसमान चाहिए होता है। ऐसे में बुजुर्गों को खुले मन से ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि कल समय उनका था। उन्होंने अपनी जिम्मेदारियां निभाई। अब जमाना नयी जेनरेशन का है उसे अपनी जिम्मेदारियां निभाने का पूरा मौका दें। अपने अनुभव उनसे तभी शेयर करें जब वे आपसे मांगे। अन्यथा उन्हें गिरकर संभलने दें। हां ये जरूर ध्यान रखें कि उन्हे कोई नुकसान न होने पाये।

-अन्नपूर्णा बाजपेई 'अंजु’.

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