किताबें शब्दों का खेत होती हैं..

books-khet
फूलों की क्यारियाँ सजकर, शब्द के भौरें इतराते-फिरते हैं...
लहलहाते हैं शब्द जब
महकती हैं उनकी गंध

तो शब्दों की हरियाली होती है
तब चहकते शब्दों से बात होती है

फूलों की क्यारियाँ सजकर
शब्द के भौरें इतराते-फिरते हैं

पौधे-तिनके-मिट्टी-धूल-कण
गंध शब्दों की निराली होती है

शब्द यहाँ उगते हैं अलग-अलग किस़्म के
भाव बहते हैं हवा के जैसे

किताबें शब्दों का खेत होती हैं!

~हरमिंदर चहल.