मौत की शक्ल को ढूंढ रहा हूं,
मिलती ही नहीं, क्यों गुम है,
वह खड़ी चौखट पर,
यह समझता कोई नहीं,
सरक-सरक कर चलने वाला,
जीवन पागल बिल्कुल नहीं,
ऐसा होता है जरुर,
नहीं किसी का कसूर,
समय सभी का ऐसा आता,
जब नहीं पछताया जाता,
वेदना-संवेदना,
बहती अश्रू धार,
निर्जन लगता जग सारा,
सूना सारा संसार,
पगला-पगला कह कर अब,
मुझे चिढ़ाया जाता है,
कंठ न उतरे शब्द कोई,
विलाप करुण हो आता है,
क्रीड़ा-कौतुक सब स्वाहा,
अब तरणी तर जाना है,
पूर्ण नहीं, अपूर्ण भला मैं,
पूर्ण में मिल जाना है,
जीवन-रस की चाह वहीं है,
नित्य का आना जाना है,
संगीत-मधुर, तान सुरीली,
‘हरिपुर’ का इक गाना है।
-harminder singh