उम्रदराज हो जाने पर हमारे पास उतने विकल्प नहीं रह जाते। जीवन प्रारंभ से अंत तक समस्याओं से घिरा है। बुढ़ापे में समस्यायें अलग तरह से बढ़ जाती हैं। आपका शरीर दुर्बल है, चलने-फिरने में कठिनाई है, उठने-बैठने की समस्या अलग, आदि।
कुछ लोग बुढ़ापे को जीवन का अंत मान लेते हैं। ऐसा नहीं है। यह अंत नहीं बल्कि एक नई पारी की शुरुआत है। यह ऐसा समय है जिसमें व्यक्ति जीवन के नये सच को अपनाता है।
माना कि व्यक्ति चिड़चिड़ा हो सकता है। उसे बात-बात पर गुस्सा आ सकता है या वह अधिक बोल सकता है। यहां संयम की भी जरुरत है। बुढ़ापे में परिजनों की जिम्मेदारी अहम हो जाती है। अपनों की देखभाल करने का उन्हें यह अवसर मिला है, जिसे वे गंवायें नहीं। ऐसा करके वे अपने बुढ़ापे को भी किसी न किसी तरह बेहतर कर रहे होते हैं। यदि वे अपने बूढ़े माता-पिता को सहारा देंगे तो उनके बच्चे उनसे प्रेरणा लेंगे। आगे चलकर वे भी उनकी सेवा करेंगे।
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बुढ़ापे में आपके पास समय ही समय है। आप उस समय को अपने मुताबिक बांट सकते हैं। यदि आप ऐसा नहीं कर पा रहे तो अपने परिजनों की मदद लीजिये। हमेशा स्वयं को खुश रखने की कोशिश करते रहिये। अखबार या किताबों का सहारा लीजिये ताकि आप बोर न हों। इससे आपकी मानसिक क्षमता बेहतर होगी। अपने नाती-पोतों को इसी बहाने किताबों से प्यार करना भी सिखायें। उनसे भी किताबें या अखबार पढ़ने को कहिये। इससे दोनों का फायदा होगा।
सबसे अहम बात सुबह की सैर को मत भूलिये। जितना चलेंगे उतना सेहत अच्छी रहेगी। चिकित्सक की सलाह समय-समय पर जरुर लेते रहें। आपको अपने खान-पान का भी एक चार्ट आदि बना लेना चाहिए। सही समय पर सही खाने पीने से शरीर स्वस्थ रहता है।
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एक बात जो मैंने कई परिवारों में देखी है कि वे वृद्ध अधिक अपने परिजनों की सेवा के पात्र बनते हैं जो परिवार को टोकते कम हैं। परिजनों की बातों पर अधिक गौर न करके आप उन्हें अपने मन से करने दीजिये। सोचिये कि जब आप जवान थे तब आप अपने तरीके से जीवन जी रहे थे। हां, राय आदि दीजिये लेकिन दबाव नहीं। जमाना बदल रहा है। आजकल युवा पीढ़ी को दबाव पसंद नहीं। वे टोका-टाकी से जल्द खीझ जाते हैं। प्यार से बात कीजिये। धीरे-धीरे आपकी बात शायद वे समझ सकते हैं क्योंकि वे इतने मूर्ख भी नहीं।
अधिक सोच-विचार मत कीजिये। मन को शांत रखने की कोशिश कीजिये।
बुढ़ापा बोझ नहीं है। यह एक अवस्था है। उम्र है इसलिए उम्रदराज होना पड़ेगा। जीवन के साथ समय बिताने से ही जीवन चलता है। चक्र बदल नहीं सकता। समय कठिन भी हो सकता है, लेकिन एक बात जरुर है कि वह बीत जाता है। बुढ़ापे को भूलकर जीवन को जीना इंसान के लिए बेहतर है। तभी उसे अपनी जिंदगी को सलीके से जीने का आनंद आयेगा।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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