Home recent क्षोभ क्षोभ harminder singh / Saturday, February 26, 2011 विषाद गहरा होता जा रहा,शुष्क गीत गा रहा,आलस्य से नहा रहा,नीरसता जगा रहा,हाय! यह वियोग है।तम सा गहरा,सलिल सा ठहरा,पर नीर है बहता,पाषाण है कहता,तन से सहता,हाय! यह क्षोभ है।-HARMINDER SINGH