प्रस्तुत हैं महापुरुषों के हिन्दी भाषा पर अनमोल विचार :
सुभाषचन्द्र बोस
"प्रान्तीय ईर्ष्या-द्वेष को दूर करने में जितनी सहायता इस हिन्दी प्रचार से मिलेगी,उतनी दूसरी किसी चीज से नहीं मिल सकती। अपनी प्रान्तीय भाषाओं की भरपूर उन्नति कीजिए,उसमें कोई बाधा नहीं डालना चाहता और न हम किसी की बाधा को सहन ही कर सकते हैं। पर सारे प्रान्तों की सार्वजनिक भाषा का पद हिन्दी या हिन्दुस्तानी को ही मिला है।"
"हिन्दी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है।"
पंडित जवाहरलाल नेहरू
"हिन्दी एक जानदार भाषा है। वह जितनी बढ़ेगी देश का उतना ही नाम होगा।"
मौलाना हसरत मोहानी
"हिंदी जैसी सरल भाषा दूसरी नहीं है।"
मौलवी महमूद अली
"संस्कृत की इशाअत (प्रचार) का एक बड़ा फायदा यह होगा कि हमारी मुल्की जबान (देशभाषा) वसीअ (व्यापक) हो जायगी।"
हजारीप्रसाद द्विवेदी
"हिन्दी को संस्कृत से विच्छिन्न करके देखने वाले उसकी अधिकांश महिमा से अपरिचित हैं।"
"हिन्दी भारतवर्ष के हृदय-देश स्थित करोड़ों नर-नारियों के हृदय और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है।"
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
"हिंदी और उर्दू की जड़ एक है, रूपरेखा एक है और दोनों को अगर हम चाहें तो एक बना सकते हैं।"
बाल गंगाधर तिलक
"मैं उन लोगों में से हूं,जो चाहते हैं और जिनका विचार है कि हिन्दी ही भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है।"
पं. कृ. रंगनाथ पिल्लयार
"हिंदी भाषी ही एक ऐसी भाषा है जो सभी प्रांतों की भाषा हो सकती है।"
राहुल सांकृत्यायन
"भाषा के सवाल में मजहब को दखल देने का कोई हक नहीं।"
"संस्कृत की विरासत हिंदी को तो जन्म से ही मिली है।"
मैथिलीशरण गुप्त
"है भव्य भारत, हमारी मातृभूमि हरी भरी,हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी।"
छविनाथ पांडेय
"हिंदी प्रांतीय भाषा नहीं बल्कि वह अंत:प्रांतीय राष्ट्रीय भाषा है।"
विनोबा भावे
"हिन्दी को गंगा नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा।"
-प्रस्तुति : दीपांशी
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