दीवानों की बस्ती में,
आज नया सवेरा है,
कल तक थीं बस यादें अपनी,
आज सुखों का डेरा है,
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पल-पल पलकों के आंगन से,
नहीं बहती मद्धिम धारा है,
इस तट मैं खड़ा हूं,
खत्म जहां किनारा है।
-harminder singh