बुढ़ापा सामने खड़ा है

















मैं खड़ा रहा शांत,
कमर झुकाए,
सहारा लाठी का लिए,
मेरी तरह कमजोर,
पर मैं मूक नहीं,
कहता हूं जरुर,
सुनने वाला कौन भला,
मूक बनना पड़ा,
विवशता और लाचारी,
मुझसे कह रही-
‘नियति है यह,
बुढ़ापा सामने खड़ा है,
इसे अपना लो।’

-Harminder Singh