![walking alone](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4-0z5EqxuISknRAFjskRAaagcoNk_ooVvagqII-HcRgq3bQkRT2RM0HXKX4L1OqtJxw3KLZGH6mA2C6CtPW0hC-Vt1MJu-2sTuQ9JEzo9nIjIEr5PCfcQE7CvDe88cUPzCQZ48Eb3iCS5/s400/walking-alone.gif)
सवेरे के बाद शाम हो गई,
यूं ही चलते-चलते,
आराम के बाद थकान हो गई,
यूं ही चलते-चलते,
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शरीर कह रहा अब बस,
बहुत हुआ खेल,
जवानी के सुखों का भाग,
बुढ़ापा रहा झेल,
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बुझा चेहरा मंद मुस्कान हो गई,
यूं ही चलते-चलते,
सुनहरी कभी, जिंदगी वीरान हो गई,
यूं ही चलते-चलते,
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मैं उदास हूं, सिर चौखट से लगाए,
उजाला खो गया,
चादर ओढ़ जर्जरता की,
इंसान सो गया,
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कभी बहती थी धारा, आज सूनसान हुई,
यूं ही चलते-चलते,
देख बुढ़ापा, जवानी हैरान हुई,
यूं ही चलते-चलते।
-Harminder Singh