जर्जर हालत में न्याय

Salmaan-khan-justice

मामला आर या पार होने में वक्त लगता है। यह हर बार न्याय व्यवस्था साबित करती रही है। फिर कहते हैं कि मामले लंबित हैं। कितना हास्यास्पद है न-तारीख खींचते रहो, न्याय का ढिंढोरा पीटते रहो। बहाने कहीं भी बनाये जा सकते हैं। कम से कम आमतौर पर लोग ऐसे ही सोचते हैं।

संजय दत्त जैसे लोग जेल से छुट्टी लेकर शूटिंग कर जाते हैं। परिवार और भावनाओं
का वास्ता दिया जाता है। ऐसा लगता है जैसे
परिवार तो रसूख वालों का ही होता है।
सलमान जैसे लोगों की फिल्मों पर लगे
करोड़ों का वास्ता दिया जाता है। जब कोई सड़क पर कुचला जाता है तो रसूखदारों का अपराध साबित होने में मामले कोर्ट में खिंचते हैं। गरीब मरता है तो मरने दो। उसे न्याय की क्या दरकार?

केस लड़ने में जिंदगी चुक जाती है। बाद में जीत
रसूखदार की होती है।

सलमान या संजय दत्त जैसे लोगों से जाने कितने लोग प्रेरणा लेते हैं।

सच भी है बुरा करने वालों या भला करने वालों से प्रेरणा लेकर लोग बुरे और अच्छे बनते हैं।

बेचारा न्याय उसी जर्जर हालत में किसी अंधेरे कोने में सिकुड़ा और सिर झुकाये नजर आता है।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.