कभी-कभी काकी को लगता है कि वह मुझसे घृणा क्यों नहीं करती?
उसे यह अटपटा लगता है। काकी को मुझसे लगाव है, यह मैं जानता हूं। उसकी बातों को मैंने बारीकी से समझाया और पाया कि वाकई बुढ़ापा अनुभव लिए होता है।
समय के साथ-साथ बूढ़ी काकी का मोह मेरे प्रति बढ़ता गया। उम्र के फासले को मोह ने छोटा बना दिया। मैं उसकी थकी जिंदगी को नजदीक से देखता हूं तो पाता हूं कि इन आंखों ने जिंदगी को कितने करीब से देखा है।
बूढ़ी काया है, फिर भी काकी को एहसास नहीं कि वह कब अलविदा कह दे, क्योंकि उससे संवाद करते समय ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। उसने हमेशा मुझे मुस्कराकर कई बातों से अवगत कराया है। यह मोह के कारण उपजी स्थिति है या कुछ ओर।
मुझे यह सोचने पर विवश करता है कि बूढ़े लोग लगाव इतना क्यों करते हैं? क्यों वे प्रेम की एक छींट से खुद को भिगो देते हैं? क्यों उनका प्रेम उनकी सूखी आंखों से छलकता है? क्या बुढ़ापा प्रेम का भूखा होता है? वृद्धों का मन क्यों मामूली बात पर पिघल जाता है?
काकी ने कहा,‘‘मन का क्या, वह तो बहता है। प्रेम की चाह किसे नहीं। मन को बंधना नहीं आता और प्रेम को रुकना। दोनों ही इंसान के संगी हैं। तुमने बचपन में मां-बाप का दुलार देखा। उन्होंने तुम्हें कितना कुछ दिया। सबसे बड़ी बात यह कि उन्होंने तुम्हें जीवन दिया। इस संसार में तुम उन्हीं की वजह से हो। तुमने उनसे घृणा की होगी, लेकिन वे तुम्हें सदा दुलार ही करते रहेंगे। बूढ़ों को अपने ही छोड़ जाते हैं, जबकि बूढ़े लोग तमाम जिंदगी उनके मोह में जकड़े रहते हैं। औलाद का सुख क्या होता है, यह वे ही जानते हैं।’’
‘‘मेरी जिंदगी अधूरी है, यदि मैं अपने माता-पिता से दूरी बना लूं।’’ मैंने कहा।
इसपर काकी बोली,‘‘बिल्कुल इंसान इंसान के बिना पूरा नहीं। हम संबंधों के दायरे में जीते हैं। यह किसी ने सिखाया नहीं, स्वत: है। जरुरतें मिलजुलकर पूर्ण होती हैं। इंसानियत सिखाती है कि जुड़कर चलो। रिश्ते यहीं उत्पन्न होते हैं। रिश्ते टूटते जरुर हैं, लेकिन उनका अंत नहीं होता। इंसान को जीना यही सिखाते हैं। इसलिए जीवन को पूर्ण करने के लिए कुछ बंधनों में रहना पड़ता है। माता-पिता या उन्हें तुमसे लगाव है, उनकी भावनाओं को समझना जरुरी है।’’
‘‘रही बात घृणा कि तो उसकी उपज भी इंसान ही करते हैं। जहां प्रेम नहीं, वहां घृणा मंडराती है। इंसान को इंसान से ही समस्या है। जबकि लगाव करके हम अपनों में रहना सीखते हैं। बुढ़ापे में बहुत कुछ बदल जाता है। मोह बढ़ता जाता है, क्योंकि वक्त कम होता है। उतने में अपनों का साथ पाने की इच्छा होती है. शायद उनका सुख आसानी से हमें संसार छोड़कर जाने दे। शायद हौंसला दे जाए, ताकि शेष वक्त को उनके सहारे बिता सकें। मन की गहराई को बुढ़ापा जानता है। उसे मालूम है कि कितना कुछ हासिल कर चुका। उसे यह भी पता है कि बहुत कुछ पाकर, जीवन अभी तक प्यासा है।’’
काकी ने खिड़की से खुले आसमान को निहारा। वह काफी देर तक सफेद बादलों की चमक में खोई रही। उसने पलकों को नीचे किया, आंखों को थोड़ा आराम दिया।
मैंने सोचा कि बुढ़ापा समय को पढ़ रहा है। शनै: शनै: जीवन की अंतिम उड़ान की तैयारी कर रहा है। यहां पलकों को भिगोने की जरुरत है, मन भरा जरुर है, लेकिन खुशी उस बात की है कि बुढ़ापे को सब्र बहुत है।
-Harminder Singh