धार्मिक आयोजनों का औचित्य


यह सप्ताह विशेष धार्मिक समारोहों के आयोजन का है। एक ओर नवरात्रों के व्रत हैं। देवी जागरण चल रहे हैं। चारों ओर रामलीलाओं के कार्यक्रमों का आयोजन भी हो रहा है। देखा जाये तो चारों ओर धार्मिक कर्मकाण्डों में लिप्त जनसमुदाय है। इसे पूर्व श्राद्ध समाप्त हुए हैं। इन सारी बातों को जब हम देखते हैं तो पता चलता है कि हमारे देश के लोगों में प्राचीन धार्मिक रीति रिवाज़ों के प्रति आज भी अटूट श्रद्धा और विश्वास है। लोग उससे पूरी तरह चिपके हुए हैं।

  राम चरित मानस में तुलसीदास ने अपने महाकाव्य के नायक को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रुप में स्थापित कर साक्षात परमात्मा बना दिया। हिन्दू जनमानस सदियों से उन्हें इसी रुप में स्वीकार करता आ रहा है और उन्हें अपना आराध्य तथा इष्ट मानता है। प्रति वर्ष देश भर में आजकल रामलीला मंचन द्वारा समाज में यही जागृति लाने का प्रयास किया जाता है कि भगवान राम के जीवन आदर्शों को अपनाकर लोग जीवन सफल बनायें। उनके जैसे मातृ-पितृ भक्त बनें। उन जैसा भ्रातृ प्रेम हो और उनके जैसा शासक हो। इसी तरह का सन्देश रामलीला द्वारा दिया जाता है।

  दूसरी ओर जब हम क्षेत्र में हो रही रामलीलाओं के आयोजन के पीछे जुड़ी कई ऐसी सच्चाईयों को देखते हैं जो राम के आदर्शों के खिलाफ जाती हैं तो लोगों की यह धार्मिक श्रद्धा खोखली सिद्ध होती है।

  चाहें शहरी क्षेत्र में अथवा ग्रामांचल रामलीला मंचन सिनेमा और टी.वी. प्रसारण की प्रगति के बावजूद आज भी प्रसंगिक है। लेकिन इतना कहना पड़ेगा कि यहां भी भीड़ जुटाने को आयोजकों को फिल्मी स्टाइल का सहारा लेना पड़ रहा है। आधुनिक फिल्मी गानों को छोड़िये कई बेहद अशलील गानों पर अशलील नृत्य करने वाली पेशेवर नृतकियों को दर्शकों से रुपये बटोरने के लिए कई जगह रामलीलाओं में नचाया जा रहा है। इन्हें कभी रावण के दरबार में, कभी पंचवटी में सूर्पनखा बनाकर और कभी नारद मुनि को मोहित करने के बहाने मंच पर नचाया जा रहा है। सामने बैठे दर्शक झूम-झूम कर आनंद ले रहे हैं। भौंड़े और अशलील कार्यक्रमों की आलोचना के बजाय प्रशंसा हो रही है। यही हमारे मनोरंजन का साधन बनता जा रहा है। नाम धार्मिक आयोजन का है और प्रयोजन सभी के सामने है।

-Harminder Singh