एक कैदी की डायरी -47

jail diary, kaidi ki diary, vradhgram, harminder singh, gajraula आज सुबह पता चला कि एक कैदी ने आत्महत्या कर ली। जेल में तरह-तरह की चरचायें हो रही हैं। जेल अधिकारी इधर से उधर दौड़ रहे थे। कुछ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता भी सुना है जेल का मुआयना कर चुके हैं।

  शाम को कैदियों को भोजन दिया जाता है। उस समय कैदी केवल हल्की-फुल्की बातचीत करते हैं। लेकिन आज माहौल पूरी तरह बदला था। दामोल मेरे पास आकर बैठ गया। प्राय: ऐसे मौकों पर जेल की आबोहवा पहले जैसी नहीं होती, कैदियों में भारी उत्सुकता देखने को मिलती है। अपने साथी को खोने का गम भी था कुछ कैदियों की आंखों में।

  कमल नाम का कैदी मेरे सामने था। उसका मन इतना भारी था कि वह चावल को हाथ में लिए ही बैठा था और किसी सोच में डूबा था।

  दामोल ने कमल से कहा,‘भाई, नदीम तो चला गया। वह वापस लौट नहीं सकता। हम तेरे साथ हैं। तू दुखी न हो।’

  दामोल के इतना कहते ही कमल फफक-फफकर रो पड़ा।

  ‘तू नहीं जानता...। वह ऐसा नहीं कर सकता। ......वह ऐसा नहीं कर सकता।’ कमल आंसू पोंछता हुआ बोला।

  किसी के दुनिया छोड़ने पर कोई उसकी दूरी सहन नहीं कर पाता, कोई सवालों के बीच उलझ जाता है। किसी को इसमें चटकारे लेने की वजह मिल जाती है।

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  मैं जानता हूं मरना उतना आसान नहीं। मैं कब का आत्महत्या कर चुका होता। मरने के लिए पत्थर से भी मजबूत कलेजा चाहिए। लोग बिना सोचे-समझे कह देते हैं कि वह मर गया, कमजोर आदमी था, मर्दानगी इसमें होती कि उनका सामना करता जिनके कारण वह मरा। महानता इसमें होती कि वह हालातों के आगे झुकता नहीं बल्कि उन्हें मुंहतोड़ जबाव देता। वे लोग शायद उस दौर से गुजरे नहीं। कुछ दौर ऐसे होते हैं जब इंसान जिंदगी से बहुत दूर जाना चाहता है ताकि हालातों का झोंका उसे छू भी न सके। यह रुसवाई खुद से उतनी नहीं होती जितनी अपने जीवन से होती है। तब मानसिकता में भारी परिवर्तन आ जाता है जो कहता है कि मौत ही छुटकारा है और छुटकारा पाने का रास्ता उसे पता होता है। जिंदगी खत्म हो जाती है, मौत से मिलन हो जाता है।

  कैदियों का जीवन आम इंसानों से भिन्न होता है। यह कैदी बनने से पहले केवल सुना था। वास्तविक अनुभव इतना कड़वा होता है, यह मालूम नहीं था। जिस तरह एक पक्षी को पिंजरे में कैद कर दिया जाता है, वह उससे बाहर आने को छटपटाता है, वही हाल एक कैदी का होता है। पक्षी एक पिंजरे से बाहर आकर आजाद हो सकता है, लेकिन यहां फर्क है। पक्षी को पक्षी कैद नहीं रखता। जेलों में इंसान कैद हैं और इंसान ही पहरेदार ताकि वे आजाद न हो सकें। लोगों को खुले में सांस न लेने देने का ठेका लिए हैं अनगिनत लोग। उन्हें इसी बात के पैसे मिलते हैं -यह उनका रोजगार है। जेलों ने अपराध को नष्ट नहीं किया, लेकिन एक तरह से नियंत्रण जरुर किया है। अंत में इसका निष्कर्ष वही निकल कर आता है कि जेलें न हों तो लोग बेलगाम हो जाएंगे और अपराधों में वृद्धि होगी।

  लेकिन इतना किया जा सकता है जिसमें अमानवीय कृत्यों से बचा जा सके। कैदियों को बेवजह तंग न किया जाए। उनकी भी भावनाएं हैं जिनकी कद्र जरुरी है। खूंखार कैदियों को अलग रखा जाए जिससे वे दूसरों की शांति में व्यवधान न कर सकें।

जारी है...

-Harminder Singh

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