मैं तब लाजो के घर था कि मानवंती अपने पति दिनेश के साथ आ गयी। उसका चेहरा खुश तो था, लेकिन चमक फीकी थी। लाजो मानो से लिपट गयी। दिनेश से मैंने काफी देर तक बातचीत की। उसकी बातें बिखरी हुई थीं। वह कई बार अटक-अटक कर बोलता था। वह मानवंती के साथ इसलिए आया था ताकि मानो अपने साथ हुए कृत्यों को उजागर न कर सके। उसका ध्यान बार-बार लाजो और मानो की ओर था।
मुझे दिनेश की बातों से लगा कि वह कुछ छिपा रहा है। उसने अपनी बहनों की तारीफ की। उन्हें सुशील, व्यवहारिक और पढ़ी-लिखी बताया। उसके पीछे भी दिनेश का मतलब था जो मुझे बाद में समझ आया।
दिनेश ने मुझसे कहा कि मैं उसके घर जरुर आऊं। लाजो ने मानो को बहुत कुछ कहा कि वह इतनी जल्दी क्यों जा रही है? इतने समय बाद आयी है, कुछ दिन ठहर जाती, क्या बुरा हो जाता? दिनेश ने दिखावे को कहा कि मानो बेचारी यहीं हफ्ता भर रहती, पर वहां सरिता बीमार है। सविता की टांग में पिछले दिनों मोच आ गई। सावित्री के इम्तिहान अभी शुरु हुए हैं।
जीजा की मनगढंत कहानी पर लाजो को यकीन हो गया था। लोग अक्सर दूसरों की बातों को आसानी से सच मान बैठते हैं क्योंकि उनके सामने वास्तविकता उस समय आयी नहीं होती।
सही मायने में कहा जाए तो मानवंती की शादी ने उसके जीवन को तबाह कर दिया था। वह चिड़चिड़ी हो गयी थी। वक्त ने उसे ऐसा बना दिया था जिनमें परिस्थितियों का मिश्रण था।
एक साल बाद वह गांव आयी। उसकी गोद में एक बच्चा था। मानो की मासूमयित छिन चुकी थी -वह अब एक बच्चे की मां थी। ऐसी मां जिसकी काया पिंजर लगती थी। इतनी कमजोर हो गयी थी वह।
कैसी मां थी वह जो अपना दूध संतान को न पिला सके। मगर वह एक स्त्री थी जिसे संस्कार मिले थे कि पति का घर ही विवाह के बाद सबकुछ होता है चाहें कितने कष्टों का सामना क्यों न करना पड़े। वह पतिव्रता नारी का फर्ज निभा रही थी। पति का हक बनता है वह पत्नि को किसी भी हाल में रखे, वह मानो को स्वीकार था क्योंकि संस्कार और मर्यादा का पालन करने के लिए वह बनी थी।
मानवंती ने पति का सुख देखा कहां था? एक बच्चे की सौगात उसके लिए बहुत कुछ थी। उसने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था। वास्तव में मानवंती का विवाह नहीं, समझौता हुआ था। ऐसा समझौता जिसने एक खिलते फूल को अपना रंग बिखेरने से पहले ही मुरझाने पर विवश कर दिया। धीरे-धीरे ही सही, लेकिन फूल की पंखुडि़यां एक-एक कर टूटती जा रही थीं।
लाजो को अपनी दीदी का दर्द मालूम हो चला था। वह उदास रहने लगी थी। मैं उससे काफी देर तक बातें करता।
कई बार स्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि हम कुछ कर नहीं पाते, सिर्फ देखते हैं।
लाजो मुझसे जुड़ती जा रही थी।
इंसान जब दुखी होता है, तब वह अपनापन तलाशता है। उसे किसी सहारे की जरुरत महसूस होती है, ताकि वह अपनी व्यथा बांट सके।
मैं लाजो से कहता,‘मेरी तरफ देखो, थोड़ा मुस्कराओ, अच्छा लगेगा।’ वह हल्का मुस्करा देती।
उस दिन वह गुमसुम बैठी थी। मैंने उसके हाथ को अपने हाथ में थामा और कहा,‘शायद तुम नहीं जानतीं कि तुम कितनी अच्छी हो। तुम खुद को दुखी क्यों करती हो? मैं इस तरह नहीं देख सकता एक ऐसी लड़की को जो बहुत खूबसूरत है, फिर इतनी उदास क्यों है।’
वह नीचे सिर झुकाये उसकी मुद्रा में बैठी रही। मैं उसके चेहरे को निहारता रहा। अचानक मुझे लगा कि मेरा हाथ भीग रहा है। लाजो ने मेरे दोनों हाथों को जकड़कर अपने माथे से लगा लिया। वह आंसू टपकाने लगी। मैं चाहकर भी अपने हाथ न छुड़ा सका। मैं विवश था।
मैं उससे बोला कि तुम तो खुद को आंसुओं में डुबो दोगी। भर्रायी आवाज में लाजो ने कहा,‘फिर क्या करुं?’
लगता था मेरे शब्द खत्म हो गये थे। उसने उत्तर ही ऐसा दिया था। अगर प्रश्न पूछ लेती तब क्या होता?
जारी है...मुझे दिनेश की बातों से लगा कि वह कुछ छिपा रहा है। उसने अपनी बहनों की तारीफ की। उन्हें सुशील, व्यवहारिक और पढ़ी-लिखी बताया। उसके पीछे भी दिनेश का मतलब था जो मुझे बाद में समझ आया।
दिनेश ने मुझसे कहा कि मैं उसके घर जरुर आऊं। लाजो ने मानो को बहुत कुछ कहा कि वह इतनी जल्दी क्यों जा रही है? इतने समय बाद आयी है, कुछ दिन ठहर जाती, क्या बुरा हो जाता? दिनेश ने दिखावे को कहा कि मानो बेचारी यहीं हफ्ता भर रहती, पर वहां सरिता बीमार है। सविता की टांग में पिछले दिनों मोच आ गई। सावित्री के इम्तिहान अभी शुरु हुए हैं।
जीजा की मनगढंत कहानी पर लाजो को यकीन हो गया था। लोग अक्सर दूसरों की बातों को आसानी से सच मान बैठते हैं क्योंकि उनके सामने वास्तविकता उस समय आयी नहीं होती।
सही मायने में कहा जाए तो मानवंती की शादी ने उसके जीवन को तबाह कर दिया था। वह चिड़चिड़ी हो गयी थी। वक्त ने उसे ऐसा बना दिया था जिनमें परिस्थितियों का मिश्रण था।
एक साल बाद वह गांव आयी। उसकी गोद में एक बच्चा था। मानो की मासूमयित छिन चुकी थी -वह अब एक बच्चे की मां थी। ऐसी मां जिसकी काया पिंजर लगती थी। इतनी कमजोर हो गयी थी वह।
कैसी मां थी वह जो अपना दूध संतान को न पिला सके। मगर वह एक स्त्री थी जिसे संस्कार मिले थे कि पति का घर ही विवाह के बाद सबकुछ होता है चाहें कितने कष्टों का सामना क्यों न करना पड़े। वह पतिव्रता नारी का फर्ज निभा रही थी। पति का हक बनता है वह पत्नि को किसी भी हाल में रखे, वह मानो को स्वीकार था क्योंकि संस्कार और मर्यादा का पालन करने के लिए वह बनी थी।
मानवंती ने पति का सुख देखा कहां था? एक बच्चे की सौगात उसके लिए बहुत कुछ थी। उसने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था। वास्तव में मानवंती का विवाह नहीं, समझौता हुआ था। ऐसा समझौता जिसने एक खिलते फूल को अपना रंग बिखेरने से पहले ही मुरझाने पर विवश कर दिया। धीरे-धीरे ही सही, लेकिन फूल की पंखुडि़यां एक-एक कर टूटती जा रही थीं।
लाजो को अपनी दीदी का दर्द मालूम हो चला था। वह उदास रहने लगी थी। मैं उससे काफी देर तक बातें करता।
कई बार स्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि हम कुछ कर नहीं पाते, सिर्फ देखते हैं।
लाजो मुझसे जुड़ती जा रही थी।
इंसान जब दुखी होता है, तब वह अपनापन तलाशता है। उसे किसी सहारे की जरुरत महसूस होती है, ताकि वह अपनी व्यथा बांट सके।
मैं लाजो से कहता,‘मेरी तरफ देखो, थोड़ा मुस्कराओ, अच्छा लगेगा।’ वह हल्का मुस्करा देती।
उस दिन वह गुमसुम बैठी थी। मैंने उसके हाथ को अपने हाथ में थामा और कहा,‘शायद तुम नहीं जानतीं कि तुम कितनी अच्छी हो। तुम खुद को दुखी क्यों करती हो? मैं इस तरह नहीं देख सकता एक ऐसी लड़की को जो बहुत खूबसूरत है, फिर इतनी उदास क्यों है।’
वह नीचे सिर झुकाये उसकी मुद्रा में बैठी रही। मैं उसके चेहरे को निहारता रहा। अचानक मुझे लगा कि मेरा हाथ भीग रहा है। लाजो ने मेरे दोनों हाथों को जकड़कर अपने माथे से लगा लिया। वह आंसू टपकाने लगी। मैं चाहकर भी अपने हाथ न छुड़ा सका। मैं विवश था।
मैं उससे बोला कि तुम तो खुद को आंसुओं में डुबो दोगी। भर्रायी आवाज में लाजो ने कहा,‘फिर क्या करुं?’
लगता था मेरे शब्द खत्म हो गये थे। उसने उत्तर ही ऐसा दिया था। अगर प्रश्न पूछ लेती तब क्या होता?
-Harminder Singh
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