एक कैदी की डायरी -50

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कुछ घाव ऐसे होते हैं जो रिसते ही रहते हैं। उनकी मरहम-पट्टी किसी कीमत पर नहीं की जा सकती। दर्द का रिश्ता नया नहीं होता। जिसे पीड़ा होती है वह उसका भाव जानता है और ऐसी पीड़ा जो तमाम उम्र बंध जाये, उसकी कल्पना करने से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं.....
कई बार मैंने सोचा कि लाजवंती अपनी दीदी की दशा से दुखी है। इस कष्ट से स्वयं को अलग कैसे करे? लाजो के माता-पिता बेचारे बिल्कुल असहाय नजर आ रहे थे। उनकी नजर में लड़का देखा भला था, फिर ब्याह के बाद उसपर किस की बुरी नजर का असर हो गया।

खैर, सब दिन एक समान नहीं होते। समय कब बदल जाए पता नहीं लगता। मानो की दूसरी संतान होने वाली थी। उसपर दिनेश की बहनों के जुल्म जारी थे। दिनेश जानता था कि इस नाजुक समय में उसकी पत्नि को उचित देखभाल की जरुरत है। इसका कारण था उसके बगल में क्लीनिक चलाने वाला एक डाक्टर। वह महिलाओं और बच्चों का विशेषज्ञ बताया जाता था। उसकी संगत में दिनेश में बदलाव आ रहे थे। संगत इंसान को इंसान का दोस्त और दुश्मन बनाती है। प्रेम और घृणा का पाठ पढ़ाती है। जैसे लोगों की संगति होगी, वैसे लोग होंगे।

दिनेश ने मानो को उसी चिकित्सक को दिखाया। उसने सलाह दी कि मानो पर इस समय अधिक ध्यान देने की जरुरत है। दिनेश ने अपनी बहनों से कह रखा था कि उसे घर का कोई काम काज न करने दें और उसका हर तरीके से ख्याल रखें।

बहनें ठहरी नीरी कम दिमाग। उन्होंने दिनेश के कहे को अनसुना किया। एक रोज वह हो गया जो नहीं होना चाहिए था। दिनेश दुकान पर था। मानो को मां बनने में अधिक समय नहीं था। वह पलंग पर लेटी थी। उसने नये जन्म लेने वाले शिशु के लिए कल्पनाओं का समुंदर बिखेर रखा था। उसके मातृत्व का रंगमंच सुन्दर और अद्भुत कलाकृतियों से सजा था। उसकी आंख लग गयी और कल्पनालोक के कपाट खुल गये। एक अजीब सजीवता थी।

सरिता और सविता आ पहुंची। मानो को देख उनका पारा चढ़ गया। सरिता ने मानो को झिंझोड़ दिया। वह हड़बड़ा कर उठी।

सविता बोली,‘यहां आराम फरमा रही है महारानी। इतना काम फैला है। मौज तुम्हारी, हड्डियां हम धुनें।’

धीमे कदमों से मानो आगे बढ़ी। तभी सविता ने पीछे से उसे धक्का दिया। वह पेट के बल गिर पड़ी। उसकी चीख निकल गयी। एक किलकारी जिसका मां को इंतजार था शांत हो गयी। मानो बेहोश हो गयी थी। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया।

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दिनेश को पहली बार एहसास हुआ कि मानो उसके लिए कितनी अहम है। वह उससे सच्चा प्रेम करता है, इसका पता उसे इतने समय बाद चला। कहां था वह अबतक? किस कोने में छिपा बैठा था उसका प्रेम? यह वह स्वयं भी नहीं जानता था।

कभी-कभी जिंदगी ऐसे हालात पैदा कर जाती है कि हमारा जीवन बदल जाता है। सोच के परिवर्तन के साथ हम स्वयं को अलग रुप में पाते हैं। लाजवंती ने मुझे बताया था कि मानो की संतान पैदा होने से पहले मर गयी। मैं उसके माता-पिता के साथ वहां पहुंचा। दिनेश कहने लगा,‘ऐसी बहनें किसी की न हों। मासूम को पैदा ही न होने दिया।’ उसका गला भर आया था। ‘इसमें बच्चे का क्या दोष था? मैं उन्हें कभी माफ नहीं करुंगा, कभी नहीं।’

मानो बिस्तर पर बेसुध थी। बीच-बीच में चौंक कर उठ बैठती। उसके हावभाव देखका लग रहा था जैसे उसने सब गंवा दिया। दुनिया उजड़ने के बाद कर्राहट से मन तो भर आता है, लेकिन जो जगह खाली हो चुकी है वह नहीं भरती। इसका दर्द जिंदगी भर सालता रहता है। कुछ घाव ऐसे होते हैं जो रिसते ही रहते हैं। उनकी मरहम-पट्टी किसी कीमत पर नहीं की जा सकती। दर्द का रिश्ता नया नहीं होता। जिसे पीड़ा होती है वह उसका भाव जानता है और ऐसी पीड़ा जो तमाम उम्र बंध जाये, उसकी कल्पना करने से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

लाजो ने सुबह से कोर तक न निगली थी। कहती थी कि भूख नहीं। वह बहुत गंभीर थी। किसी सोच में डूबी थी। उसकी परेशानी मैं देख नहीं सकता था। मैंने कहा,‘जानता हूं तुम दुखी हो। दुख मुझे भी है। तुम्हारा दिल व्यथित है। व्यथा को भीतर मत समेटो। हालात हमारे बस में नहीं होते। समझने की कोशिश करो।’

इतना कहते ही उसने अपना सिर मेरे कंधे से सटा लिया और आंसू बह निकले।

‘फिर क्या करुं, तुम्ही बताओ।’ डगमगाती आवाज में उसने कहा।

जारी है...

हरमिन्दर सिंह 

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