मौज में घूमता बछड़ा


एक बछड़ा मेरे सामने से गुजरा। उसकी नजर सीध में थी। वह मंथर गति से चल रहा था। उसकी सेहत देखकर यह साफ अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह खाने-पीने से कोई परहेज नहीं करता होगा या लोग उसकी खूब सेवा करते होंगे। ये दोनों बातें उसकी सेहत के लिए बेहतर सिद्ध हो सकती थीं, लेकिन तीसरी बात यह है कि वह खुद भी कहीं से कुछ भी उठाकर खा लेता होगा।

  ब्रजघाट की गलियों में इस तरह के पशु घूमते मिल जायेंगे। कई लोग इन्हें आवारा पशु भी कह देते हैं। मगर इनपर कोई फर्क नहीं पड़ता। इनकी चाल मस्त रहती है। अपनी मस्ती में ये आपको घूमते मिल जायेंगे।

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  काफी समय मैं तिगरीधाम गया था जहां मैं गायों को घरों के बाहर रास्ते पर बंधे देखा। तिगरी भी ब्रजघाट की तरह एक धार्मिक स्थल है। वहां भी गंगा गुजरती है। कई गायों की स्थिति बेहद चिंताजनक थी। उनकी हड्डियां साफ नजर आ रही थीं। ऐसा लगता था जैसे उन्हें महीने में चार या पांच बार ही चारा मिलता हो। उनकी गले की रस्सियां देखकर भी मन द्रवित हो रहा था। गर्दन को इतना कसा था कि वे गहरे निशान की शक्ल ले चुका था। गायों को इस तरह बांधा गया था कि वे ठीक से अपनी गर्दन भी न घुमा सकें। बैठने में उन्हें बहुत दिक्कत होती होगी क्योंकि जमीन पक्की थी या वहां खड़ंजा था जहां गोबर और कीचड़ के कारण गंदगी थी।

  गौ-पालक गायों को शारीरिक और मानसिक रुप से यातनायें देने में पीछे नहीं। इनमें ज्यादातर लोग ऐसे हैं जो इसलिए गाय रख रहे हैं ताकि वे उसकी पूजा कर सकें। साथ ही गाय के दूध को बेचकर पैसा भी कमाया जा सकता है।

  वृद्ध होने पर पशुओं को उनके पालक औने-पौने दामों में बेच देते हैं। वे जाते कहां हैं यह सभी जानते हैं।

  यदि हम ब्रजघाट की बात करें तो यहां वृद्ध पशुओं को गौ-शाला में भेजा जाता है। वहां से  पशुओं के गायब होने की सूचनायें मिलती रहती हैं।

  गाय का वह बछड़ा अच्छे दिनों में जी रहा था। उसकी खुशी जायज थी। भविष्य का उसे पता नहीं, लेकिन जब तक वह घूम रहा है तबतक उसे चिंता करने की कोई जरुरत नहीं।

-हरमिन्दर सिंह चाहल

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