बूढ़े काका और आजादी का जश्न

independence day
बूढ़े काका भी आजादी का जश्न मना रहे हैं। उन्होंने मुझे एक तिरंगा रंग कर दिया है। यह उन्होंने अपने आप किया है। मोहल्ले के बच्चों से उन्होंने यह सब छिपाकर रखा। ऐसा करने के पीछे कारण यह था कि वे सभी को चौंकाना चाहते थे। इसका खुलासा करने के लिए उन्हें कहीं जाना नहीं पड़ा। मोहल्ले के चौराहे के करीब वे कुर्सी डालकर बैठ गये। उनके पास एक नहीं, दस नहीं, बल्कि 40 तिरंगे थे। तिरंगे कागज से बने थे।

मैंने काका से पूछा,‘आपने इतनी मेहनत क्यों की? मुझे कह दिया होता।’

इसपर काका बोले,‘आजादी का मतलब मैं अच्छी तरह जानता हूं। उसकी कीमत भी चुकाई है हमने। शामिल हुआ हूं मैं उन आंदोलनों में जब हमने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई। लाठियां खाईं, घायल हुए और तरह-तरह की यातनायें सहीं, लेकिन आजादी के लिए लड़ते रहे। पीछे हटना हमने सीखा नहीं था। जो पीछे हटा वह इस देश का लाल नहीं था। हमने देश को आजादी दिलवाई। यह सभी का प्रयास था। खून बहा, अपनों को खोया। इतनी कुर्बानियां दीं। तब जाकर हम आजाद हो पाये।’

‘मैं मना रहा हूं आजादी का जश्न। उन आंदोलनकारियों के नाम हैं ये सभी तिरंगे। उन्हें समर्पित किया है मैंने। बच्चों को यदि हम शुरु से आजादी का मतलब सिखायेंगे तो वे देश के लिए काम करेंगे, न कि अपने लिए। हमें पता है कि जब देश के लोग देश के लिए जीते हैं तो वह देश तरक्की करता है, उन्नति कर आगे बढ़ता है। हमें यही तो चाहिए। हम देश के उन वीरों की शहादत को बेकार नहीं जाने देना चाहते।’

थोड़ी देर लगी, काका के तिरंगे हर छत पर लहरा रहे थे। वह दृश्य गर्वान्वित कर रहा था। खुश थे काका और मैं भी। शुरुआत थी वह छोटी सी, लेकिन उसके परिणाम अद्भुत होंगे यह हम जानते हैं।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.

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