प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी!
राधिका श्याम से जो मिलने लगी!
ढ़ल गई सारी अमावस पल में,
चांदनी मानो कोई खिलने लगी!
प्रेम का रंग हो यदि गहरा!
अपना मन भी हो बस वहीँ ठहरा!
कितनी तड़पन की बात हो जाये,
भेंट करने पे जब लगे पहरा!
श्याम भी भेंट को हुए आतुर,
राधिका भी वहां मचलने लगी!
प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी...
श्याम कर्तव्य की लड़ाई में!
राधिका शोक की लिखाई में!
धार अश्रु की फूटती ही रही,
न ही आराम था दवाई में!
राधिका श्याम के प्रण के लिए,
उनके रस्ते से दूर चलने लगी!
प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी...
श्याम, राधा का साथ टूटन पे,
राधिका फूट फूट रोने लगी!
श्याम भी हो गए बहुत बेबस,
राधिका मौन रूप होने लगी!
प्रेम की एक ये अमर गाथा,
देखो इतिहास को बदलने लगी!
प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी,
राधिका श्याम से जो मिलने लगी!
-चेतन रामकिशन "देव"
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