यात्रायें और समय की मजबूरी

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ये तस्वीरें मेरे भाई ने करीब दो साल पहले अपने कैमरे में कैद की थीं जब वह नैनीताल की यात्रा पर मित्रों संग गया था।

बहुत से लोग जानते हैं कि पहाड़ों पर यात्रा करने के बाद मन को शांति मिलती है। मैंने कभी पहाड़ों की यात्रा नहीं की। बहुत बार देहरादून जाना हुआ, लेकिन मंसूरी नहीं जा सका। दूर से जरुर देखा। रात का नजारा देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। रोशनी से नहाये पहाड़ों को मैंने देखा। नैनीताल के करीब तक पहुंच गया लेकिन जाना वहीं तक था। उसी तरह हिमाचल को दूर से ही देख आया।

यात्रायें करने की मैंने कभी जिद नहीं की। इसका कारण यह नहीं कि मैं घुमक्कड़ी नहीं कर सकता। कारण है समय चाहिए। मुझे कई लोगों ने कहा भी है कि मुझे लंबी यात्रायें करनी चाहिएं। ये वे लोग हैं जो जिंदगी भर घुम्मकड़ बने रहना चाहते हैं। ये वे हैं जिन्हें पैसे और समय की परवाह नहीं। यह भी कहा जा सकता है कि ऐसे लोग संसार के हर हिस्से को पयर्टन स्थल बनाने की मुहिम चलाने की सोच रहे हैं।

स्कूली दिनों में मैंने पहाड़ों के बहुत से चित्र उकेरे। उन्हें बारीकी से सजाया। नदियों को बहते दिखाया। पेड़ों को खूबसूरती से स्थान दिया। एक झोपड़ी भी बनायी जिसमें धुंआ निकलने की चिमनी थी। घास थी, पत्थर थे और कुछ चरते पशु। सूरज भी झांक रहा था पहाड़ों के बीच से। यह लैंडस्केप था।

मित्रों ने बहुत यात्रायें कीं। उन्होंने अलग-अलग तरह की कहानियां सुनाईं। कई पर हंसी आयी। कई कहानियां मनोरंजक लगीं। जबकि कुछ कहानियां ऐसी थीं जिनपर यकीन नहीं किया जा सकता था। उन्हें एक कान से सुनकर दूसरे कान निकाल बाहर करने में कोई बुराई महसूस नहीं हुई।

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पहाड़ों की छटा अद्भुत है। उनमें एक अलग तरह का संगीत है जिसे सुनने के लिए हमें वहां जाना ही पड़ेगा।

घूमते हुए जो फोटोग्राफी की गयी उसके लिए उनकी तैयारी कैसी थी? जिस होटल में वे ठहरे वहां बिजली क्यों गुल हो गयी? ऐसे तमाम किस्से मुझे सुनाये गये। मैं कितना प्रभावित हुआ यह मैं जानता हूं। मैंने कितना उनपर गौर किया यह मैं जानता हूं।

चीनी यात्रियों के बारे में मैंने किताबों में पढ़ा है। उनके यात्रावृत्तांत मुझे उत्साहित करते हैं। कई पत्रिकाओं को मैं आज भी पढ़ता हूं जिनका मूल विषय यात्रा ही है। पर मैंने यात्रा पर जाने की अभी सोची नहीं। हां, छोटी-छोटी यात्रायें करता रहता हूं। वे शायद मजबूरी में करनी पड़ती हैं। अधिकतर यात्रायें जरुरी काम के लिए की जाती हैं जिनमें मुझे बाहर घूमने का वक्त नहीं मिल पाता। गया और आ गया। हां, बीच-बीच में सफरनामा में आप पढ़ते रहते हैं कि क्या हुआ और क्या नहीं हुआ।

पहाड़ों की छटा अद्भुत है। उनमें एक अलग तरह का संगीत है जिसे सुनने के लिए हमें वहां जाना ही पड़ेगा। इस बार मन बनाया है किसी पहाड़ी स्थल पर कुछ पल शांति के बिताये जायें। मुझे लगता नहीं यह आसानी से मुमकिन हो पायेगा क्योंकि वक्त ने इंसान को इतना व्यस्त बना दिया कि वह अपने बारे में सोचने से पहले काम की सोचता है। वृद्धग्राम के लिए दिन में दो घंटे में जितना हो पाता है वह किया जाता है। यदि तीन घंटे वक्त मिल जाये तो प्रतिदिन पांच या छह पोस्ट जरुर पढ़ सकेंगे आप।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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