‘‘खुद को खोजने की कोशिश में हम बहुत आगे निकल जाते हैं। खोज हो पाती है या नहीं, यह स्वयं हम जान नहीं पाते। संसार में ऐसा ही होता है जब आप किसी तलाश में स्वयं को जुटा देते हैं तो संशय और कई तरह के पड़ाव आपके सामने होते हैं। दिमाग को एक बार लगता है कि यह रास्ता सही है, दूसरा गलत, जबकि कभी-कभी दोनों रास्ते गलत और दोनों रास्ते सही भी हो सकते हैं।’’ बूढ़ी काकी बोली।
काकी ने आगे कहा,‘‘तुम अपना ध्येय जानते हो। तुम्हें मालूम है कि तुमने स्वयं पर विश्वास किया है। तुम यह भी जानते हो कि दुनिया को तुम बदल नहीं सकते। इसलिए स्वयं को बदलना चाह रहे हो। स्वयं की तलाश कर रहे हो ताकि तुम वह हासिल कर सको जिससे आत्मसंतुष्टि प्राप्त हो सके। लेकिन असल में तुम चाह क्या रहे हो? और तुम्हें उसकी तलाश क्यों है? ये प्रश्न भी तो उठेंगे।’
बूढ़ी काकी आध्यात्मिक ज्ञान को बांट रही थी। उसकी सोच मुझे प्रभावित करती है। कुछ बातें समझने में मुझे बेहिसाब समय व्यय करना पड़ता है, लेकिन काकी मुझे हर बारीकी को समझाती है। जीवन के बारे में उसके विचारों का मैं हमेशा कायल रहा हूं। अब वह कुछ अधिक अध्यात्मिक हो गयी है।
काकी बोली,‘‘जीवन की खोज करने की जरुरत नहीं। जीवन तो हमारे साथ है। हम स्वयं को खोजने निकले हैं। हमारी खोज कभी पूरी नहीं होती। तमाम जिंदगी हम उसमें जुटे रहते हैं। स्वयं को यकीन दिलाते रहते हैं कि हमने स्वयं को जान लिया। ऐसा कभी नहीं होता। हां, कुछ हद तक हम इस कोशिश में स्वयं को जान जरुर लेते हैं, लेकिन पूर्ण रुप से ऐसा संभव नहीं। यदि ऐसा हुआ तो जीवन का रहस्य किसी मोल का नहीं। जीवन का मतलब ही नहीं रह जायेगा। फिर जीवन बिना महत्व का हो जायेगा।’’
‘‘उम्रदराजों को चाहिए कि वे अपना जीवन स्वयं की शांति की खोज में बितायें। उनकी अपनी इच्छायें जो पीछे छूट गयी थीं, उनपर गौर करें। हालांकि वे उन्हें हासिल न कर सके, लेकिन कल्पनाओं में उन्हें लाकर सुखद अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं। स्वयं को समझ सकते हैं, जितना समझा जाये उतना। जीवन को एक नये सिरे से दूसरे सिरे तक बांध सकते हैं। बुढ़ापा यह नहीं कहता कि आप थक जाओ और आराम करो। बुढ़ापा चाहता है कि आप चलते रहो, ताकि जीवन अपनी लय में रहे।’’
काकी की जीवन पर खोज जारी है। बुढ़ापे पर उसके विचारों की गठरी समय के साथ खुलती रहती है। उसने जीवन के रहस्य को अपनी तरह से समझाया है। काकी चाहती है कि इंसान स्वयं को खोजे लेकिन जीवन को भी याद रखे।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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